अपने हुनर के बल पर दिव्यांगता को मात दे रहे है दीपक
लोहाघाट। कहते हैं कि प्रतिभा किसी परिचय की मोहताज नहीं होती है। यह साबित किया है दोनों हाथों से दिव्यांग पाटी विकासखंड के खरही ईजर निवासी दीपक शर्मा ने। उन्होंने अपनी दिव्यांगता को मात देते हुए अपनी चित्रकारी के हुनर को अपनी आजीविका का जरिया बनाया है। उन्होंने अपने हाथों की कमजोरी को ही अपनी आजीविका का जरिया बनाकर दिव्यांगों के लिए अनूठी मिसाल पेश की है।
दोनों हाथों से दिव्यांग होने के बाद भी 32 वर्षीय दीपक शर्मा ने सरकारी सुविधाओं के मोहताज रहने वाले लोगों को आइना दिखाने के साथ दिव्यांगों के लिए प्रेरणास्रोत बनने का कार्य किया है। वर्ष 2011 में कुमाऊं विश्वविद्यालय से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद दीपक ने रोजगार हासिल करने के लिए सरकारी मदद का इंतजार करने के बजाए पेंटिग सीखने पर अपना ध्यान लगाया। अपने दिव्यांग हाथों के हुनर से पेंटिंग और चित्रकला को सम्मानजनक तरीके से जीवन यापन का माध्यम बनाया।
दीपक बताते हैं कि उन्होंने क्षेत्र में आने वाले पेंटरों की पेंटिंग को देखकर स्वयं घर में पेंटिंग बनाने का प्रयास किया। उनके प्रयास को पंख उस समय लगे जब इंटरमीडिएट में पढ़ने के दौरान जीआईसी भिंगराड़ा में हुई चार्ट प्रतियोगिता में प्रथम स्थान हासिल किया। जिससे उनका हौसला काफी बढ़ गया तथा इन्होंने इस कार्य को अपने व्यवसाय से जोड़ लिया। कुछ समय बाद इन्होंने बाकायदा पेंटिंग में प्रयुक्त होने वाला सामान खरीद कर आसपास के क्षेत्रों में पेंटिंग बनाने का कार्य शुरू कर दिया। वर्तमान में यही पेंटिंग उनकी दो वक्त की रोटी का साधन बनी हुई है। दीपक वर्तमान में विभिन्न स्कूलों, सरकारी कार्यालयों में पेंटिंग करने के अलावा विभिन्न विभागों के साइन बोर्डों, बैनर और पोस्टरों के जरिये काम मिलने पर प्रति माह दो से पांच हजार रुपये तक की आमदनी कर लेते हैं। दीपक बेहतरीन पेंटिंग के अलावा सुलेश में भी अच्छी पकड़ रखते हैं। दीपक के बनाए चित्र और अन्य पेंटिंग देखने पर एकबार भी यकीन नहीं होता है कि यह लिखावट किसी हाथों से दिव्यांग व्यक्ति की है।
दोनों हाथ दिव्यांग होने के बावजूद पेंटिंग को बनाया आजीविका का जरिया
पेंटिंग के जरिए प्रतिमाह कर लेता है दो से पांच हजार रुपये की आमदनी