
लोहाघाट। उत्तराखंड भले ही गंगा यमुना का उद्गम होने से बाहरी दुनिया के लोग सोचते होंगे कि पहाड़ों में पीने के पानी की क्या दिक्कत होगी, इसका एहसास तो गर्मियों में यहां आने पर ही होता है। जिस तेजी के साथ हमारे जलाशय, नौले, धारे, गाड़ एवं गधेरे सूखते जा रहे हैं। यह यहां के लोगों के लिए प्रकृति ने खतरे का अलार्म बजा दिया है कि यदि अभी नहीं जागे तो आने वाले समय में एक-एक बूंद पानी के लिए तरसना होगा।दरअसल इस समस्या को मनुष्य द्वारा ही पैदा किया गया है। जब तक हमारा व प्रकृति के बीच आपसी रिश्ता बना रहा, तब तक कोई पर्यावरणीय समस्या नहीं थी। जब से व्यक्ति ने प्रकृति यानी पेड़ों के प्रति लालच किया उसी वक्त से प्राकृतिक संतुलन बिगड़ने लगा। अपनी कोख में पानी को बांधने की क्षमता रखने वाले पहाड़ के कल्पवृक्ष, बांज पर कुल्हाड़ी की मार लगातार पढ़ने से यहां जल संकट दिनोंदिन गंभीर होता जा रहा है। यदि समय रहते धरती के आवरण पेड़ों के प्रति हमारी संवेदनशीलता पैदा नहीं हुई तो वह दिन दूर नहीं जब हम अपने पूर्वजों की विरासत हरे-भरे जंगलों के स्थान पर भावी पीढ़ी के लिए नंगे पहाड़ व रेगिस्तान छोड़ जाएंगे।

डीएफओ आरसी कांडपाल का कहना है कि वन विनाश की त्रासदी हमें प्राकृतिक आपदा, जल संकट आदि अनेक रूपों में झेलनी पड़ रही है। चौड़ी पत्ती वाले वन क्षेत्र में गिरी पत्तियां धरती का बिछौना बनकर पानी को भूमिगत करती थी। इस प्रजाति के पेड़ों को काफी नुकसान पहुंचा है। जब तक मनुष्य धरती के वन विहीन क्षेत्र हरा भरा करने का संकल्प नहीं लेते तब तक हमें पानी सुगमता से नहीं मिलेगा। तब तक हमें बरसाती पानी के संग्रह, स्प्रिंग शैड मैनेजमेंट को बढ़ावा देने के साथ पानी की एक-एक बूंद संग्रह करनी होगी। जहां बांज एवं पानी के पोषक पेड़ सुरक्षित हैं वहां जल संकट नहीं है। अद्वैत आश्रम मायावती के पंचायती जंगल का ही उदाहरण लें वहां जल स्रोतों का जल स्तर एवं पर्यावरण समस्या को जंगल बांधे हुए हैं।
पर्यावरण संरक्षण समिति पाटी के अध्यक्ष एवं अपनी हिकमत से एक-एक बूंद पानी को संग्रह कर मत्स्य पालन से लोगों को आजीविका का साधन जुटा रहे पूर्व फौजी एवं पर्यावरणविद् कृष्णानंद गहतोड़ी ने पानी का जो प्रबंध किया है यह सब जल संरक्षण की एक मिसाल है। श्री गहतोड़ी का कहना है कि हमारी विवेकशीलता इस बात पर निर्भर करती है कि हम प्रकृति से कितनी छेड़छाड़ कम कर सकते हैं। प्रकृति हमें सब कुछ देती है बदले में वह हमसे केवल अपना संरक्षण चाहती है। वन लक्षण और वृक्षारोपण को हमें अपनी जिंदगी की दिनचर्या में शामिल करना होगा। वन विनाश हमारे जीवन की सांसे कम करता जा रहा है।