आज के समय में जहां करोड़ों रुपए खर्च कर योजनाएं सफल नहीं हो पा रही हैं, काम शुरू करने से पूर्व उसमें भ्रष्टाचार की बू आ जाती है। ऐसे सामाजिक व राष्ट्रीय परिवेश में यदि कोई अधिकारी बगैर पैसे के अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति एवं जन सेवा की भावना से ऐसा कार्य कर दे, जो करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद ही संभव हो सकता था। ऐसा सुनने वह देखने पर जाहिर है। सभी लोग आश्चर्य चकित होंगे, लेकिन चम्पावत जिले में यह जमीनी हकीकत है। वर्ष 1990 की शुरुआत का समय रहा होगा। जब लोहाघाट एवं आसपास के लोग संकर नस्ल की गायें पालने के बारे में जानते तक नहीं थे। गांव घरों में बमुश्किल बद्री गाय से एक घंटी दूध पैदा किया जाता था। और अधिकांश लोगों की निर्भरता लैक्टोजेन पाउडर मिल्क पर हुआ करती थी।
ऐसे समय में लोहाघाट के राजकीय पशु चिकित्सालय में दुबले, पतले सीधे, सरल एवं आत्मीय स्वभाव के लेकिन उत्साह से भरे जिसमें कुछ नया करने की तमन्ना थी। पशु चिकित्सा अधिकारी के रूप में डा० भरतचंद का यहां आगमन हुआ। उन्होंने अपना बगैर समय गंवाए क्षेत्र में श्वेत क्रांति लाने के लिए कठुआ गाय का नस्ल सुधार करने के साथ अन्य स्थानों से संकर नस्ल की गायें लाकर खाते- पीते और पढ़े-लिखे परिवारों के गोठो में बधवाई। जब इन लोगों के घरों से बाल्टिया भरकर दूध बाजारों व होटल में जाने लगा तो, क्षेत्र के अन्य पशुपालको में संकर नस्ल की गाय पालने की जबरदस्त होड़ शुरू हो गई।डॉ 0 चंद को पशु पालकों में ऐसे ही प्रतिक्रिया की उम्मीद थी। तथा उन्होंने रात दिन परिश्रम कर यहां के हर गोठ में संकर नस्ल की गायें बधवाई। रायनगर चौड़ी जैसे गांव में तो लोगों ने तीन-चार गायें एक साथ पालनी शुरू कर दी।भारत सरकार द्वारा 2007 में की गई पशु गणना में चम्पावत जिले में तब 16हजार संकर गायों की गिनती का यह आंकड़ा सूबे के पर्वतीय क्षेत्र एवं चम्पावत जैसे छोटे आकार के जिले के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी।
डॉ0चंद ने अपनी 10 वर्ष की सेवा के दौरान यहां श्वेत क्रांति का जो इतिहास रचा था। इससे प्रेरित होकर अन्य जिलों के लोगों ने भी यहां से प्रेरणा ली। जिसमें वे सफल भी होते जा रहे हैं। यह किसी अधिकारी के लिए ईर्ष्या की बात हो सकती है। कि एक अधिकारी जो अपनी विशिष्ट सेवाओं से लोगों में इतना मान और सम्मान का अधिकारी कैसे हो गया? यह एक गंभीरता से सोचने का विषय है। दरअसल डॉ चंद ने यहां के लोगों के बीच रहते हुए, जिस आत्मीय स्वभाव से कार्य कर उनकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में हाथ बढ़ाया, उसे देखते हुए यहां के लोग उनकी सद्ददयता को कभी नहीं भूल सकते हैं। डॉ०चंद की दृष्टि में गोधन जिस गोठ में बधी रहेगी वहां सदा ईश्वर की कृपा दृष्टि बनी रहती है ।डॉ० चंद चाहे कितने ही ऊंचे पद पर पहुंच गया हो लेकिन उन्होंने कभी भी गोधन का साथ नहीं छोड़ा। राह चलते यदि कोई गाय बीमार होती थी तो उसका इलाज करने में उन्हें कभी कोई गुरेज नहीं होता था। उनकी इस अवधारणा को जिले का पशुपालन विभाग आज भी आगे बढ़ता जा रहा है।