लोहाघाट। चंपावत जिले के लधियाघाटी क्षेत्र में ऐसे कई ऐतिहासिक, पौराणिक तीर्थ स्थल है जिनका प्रचार प्रसार न होने के कारण आज भी यह स्थल श्रद्धालुओं की दृष्टि में ओझल बने हुए हैं। सकल धाम महर पिनाना में सकल देवता के रूप में जाने पहचाने वाले भगवान विष्णु का मंदिर बद्रीनाथ तीर्थ के लघु रूप में माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में पूजा अर्चना करने से बद्रीनाथ धाम की तरह सभी पुण्यफल प्राप्त होते हैं। वैशाख पूर्णिमा के दिन मंदिर के कपाट खुलते हैं। और कार्तिक पूर्णिमा को बंद कर दिए जाते हैं। छः माह तक भगवान विष्णु सयन करते हैं। लोहाघाट – रीठा साहिब मार्ग में दुर्गा नगर से लगभग तीन किलोमीटर का पैदल सफर करने के बाद घने जंगलों के बीच में यह धाम स्थित है। ऐसी मान्यता है कि इस धाम में निस्वार्थ भाव से पूजा अर्चना करने पर निःसंतान की मनोकामनाएं पूर्ण होने के साथ ही खाली झोली लेकर आया उपासक भगवान विष्णु का कृपा पात्र बन जाता है। यहां यात्रियों के लिए पुरानी धर्मशाला है। महर पिनाना एवं कैन्युणा गांव के निर्मांसी जोशी लोग मंदिर के पुजारी हैं। मंदिर में किसी प्रकार की बली नहीं दी जाती है। यह क्षेत्र का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां बद्रीनाथ की तरह पूर्ण विधि विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती रही है। यहां के सभी रीति रिवाज भी बद्रीनाथ धाम की तर्ज पर होते हैं। पर्यटन एवं धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से यह दिव्य स्थान श्रद्धालुओं की बाह जोट रहा है।
चंपावत। सीडीओ संजय कुमार सिंह का कहना है कि ऐसे दिव्य स्थान जो लोगों की जानकारी से दूर लोक आस्था के स्थानों को पर्यटन व धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने के लिए इस धाम को मानस खंण्ड माला में शामिल किया जाएगा। इससे पूर्व जिला पर्यटन विकास अधिकारी धाम का जायजा लेकर वहां पर्यटन व धार्मिक पर्यटन की संभावनाओं का अध्ययन करेंगे।
लोहाघाट। विधायक खुशाल सिंह अधिकारी का कहना है कि महर पीनाना धाम के रोशनी में आने के बाद यहां के अन्य ऐसे तीर्थ स्थलों के विकास के द्वार खुलेंगे जहां धार्मिक स्थानों के बारे में लोकोक्तियां जुड़ी हुई है। लधौनधुरा भी ऐसा दिव्य स्थान है जहां चांदनी रात में भगवान शिव की शोभायात्रा निकाली जाती है। ऐसा मेला उत्तराखंड में कहीं नहीं होता है।