गिफ्ट के रूप में दे रहे हैं लोग लोहाघाट की मशहूर हाथ से बनी कढाइयां।
पीएम मोदी की अपील का हो रहा है असर।
लोहाघाट.। अब नववर्ष एवं अन्य मांगलिक अवसरों में लोगों ने गिफ्ट देने का ट्रेंड ही बदल दिया है! अब लोग अपने प्रियजनों को लोहाघाट की मशहूर हाथ से बनी लोहे की कढ़ाई को गिफ्ट में देने लगे हैं !दरसल लोगों का मानना है कि यहां की बनी कढ़ाई में खाना बनाने पर भोजन में प्राकृतिक रूप से आयरन मिलने के साथ उसके स्वाद का मजा ही कुछ अलग है! इस कड़ाई को नींबू और राख से साफ करने पर यह चमकने लगती है! इसे जिसे गिफ्ट में दिया जाएगा वह लंबे समय तक याद रखेगा ! वैसे आए दिनों मिठाइयों में मिलावट आम बात हो गई है ! फिर अधिकांश लोगों को डायबिटीज ने घेर रखा है ! अन्य गिफ्ट काफी महंगे होते हैं! लोगों में सबसे ज्यादा असर पीएम मोदी के उस आह़वाहन का हुआ है‚ जिसमें उन्होंने उत्तराखंड दौरे के दौरान बाहर से आने वाले पर्यटकों व अन्य लोगों से पहाड़ के उत्पाद या हस्त निर्मित वस्तु को सौगात के रूप में ले जाने का अनुरोध किया है! मध्य प्रदेश के रहने वाले लोनिवि के अधिशासी अभियंता शिवाकर चौरसिया का कहना है कि जब उन्हें यहां की लोहे की कढ़ाई की खासियत की जानकारी मिली तो वे कई कड़ाइयां अपने मिलने वालों के लिए ले जा चुके हैं।
बरेली से आई सुनीता कहती हैं कि यहां की कढ़ाई गिफ्ट में देने के लिए इतनी उपयुक्त है कि एक तरफ व्यक्ति वर्षों तक हमारी याद रखेगा तथा इससे हम स्थानीय रोजगार को भी बढ़ावा देने में मददगार हो सकते हैं! लोहाघाट क्षेत्र के गांवो में पहले कढ़ाई को व्यापक स्तर पर बनाए जाता था!समय के साथ अब यह कारोबार सिमट जा रहा है इसके बावजूद भी पिछले 100 वर्षों से पीढ़ी दर पीढ़ी कढाइयां बनाते आ रहे कमलेख लधौन के कैलाश राम का कहना है कि उनके बुजुर्गों का कहना था कि इस हुनर को कभी मत छोड़ना हालांकि मशीन से बनी कढाइयों की तुलना में हास्य से बनी कढाइयों की बात ही कुछ और होती है! लेकिन लोहे को पीटते पीटते वक्त हमें जहां अपने बाप-दादाओ की याद आते हैं वही उन्हें इस बात की खुशी है कि अब कडाइयों की बिक्री के लिए बाजार तलाशने की जरूरत नहीं है!
कैलाश की कडाइयों के प्रचार के लिए महाराष्ट्र के गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी एवं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ब्रांड एंबेसडर का कार्य कर रहे हैं !भगत दा एवं हरदा के कारण यहां की कढायां कैलाश के नाम से बिकती हैं ! सीएम रहते हुए हरीश रावत ने लोहाघाट में आकर कैलाश के स्टाल में जाकर इस कार्य के लिए उसकी पीठ भी थपथपाई है ! वही कैलाश की कढाइयां मुंबई आदि स्थानों में भी पहुंच चुकी हैं।
