
चंपावत। वीरांगना मंदोदरी आमा नहीं रही। 88 वर्ष की आयु में उन्होंने टनकपुर के आमबाग स्थित आवास में अंतिम सांस ली। मूल रूप से चिल्कोट गांव की आमा ऐसी साहसी महिला थी जिन्हें ईश्वर ने घोर अभाव के बीच दूसरों की खुशी में खुश होकर संघर्षमय जीवन की निराशा को भूलते हुए संघर्षों के बीच जीना सिखाया था। आमा के ऊपर से 1965 में ही फौजी पति का साया उस समय उठ गया। जब वह 26 वर्ष की थी उनका बड़ा बेटा दो वर्ष का तथा छोटा बेटा गर्भ में पल रहा था उन्हें पति के भारत-पाक युद्ध में शहीद होने की जानकारी शहादत के सोलह दिन बाद मिली। उस वक्त उन्हें मात्र साढ़े सात रूपय पेंशन मिला करती थी। आमा ने इसे नियति का चक्र मानते हुए अपना धैर्य और साहस नहीं छोड़ा तथा उन्होंने घर में साग सब्जी व दूध का उत्पादन कर यहां से 8 किलोमीटर दूर रोज लोहाघाट आकर दोनों बच्चों की परवरिस की तथा उन्हें उच्च शिक्षा दी।
आमा का इरादा दोनों बच्चों को भी फौजी बनाने का था लेकिन शुरुआती परीक्षा में ही दोनों बच्चे बैंक में निकल गए। बाद में जब बेटो ने छतार में जमीन खरीद कर मकान बनाया तो वह बच्चों के साथ रहते हुए समाज सेवा के कार्यों में जुट गई। छतार में सभी लोग गांव से यहां आकर बसे हुए हैं। यहां बच्चों के खेलने कूदने एवं सार्वजनिक कार्यों के लिए कोई स्थान न देखकर आमा ने अपनी पेंशन से 12 लाख रुपए में जमीन खरीद कर अपने पति शहीद शिरोमणि की स्मृति में पार्क का निर्माण किया यही नहीं कोरोनावायरस के दौरान आमा ने मानव सेवा के लिए 51 हजार रूपय रेड क्रॉस सोसाइटी को दिए। आमा के बड़े पुत्र एमडी चिल्कोटी टनकपुर स्टेट बैंक के उपप्रबंधक तथा छोटे बेटे जनार्दन चिलकोटी कोटद्वार में स्टेट बैंक के मुख्य प्रबंधक हैं। आमा कि सीख अनुसार दोनों बेटे लोगों की सेवा को अपना कर्तव्य मानकर अपने कार्य व्यवहार से लोगों की खूब दुआएं बटोर पर आ रहे हैं।