फलोत्पादन एवं मौन पालन की जुगलबंदी किसानों को दिला सकती है दोहरा लाभ।
फलों एवं शहद का बढेगा उत्पादन ।गुणवत्ता मैं भी आएगा निखार।
लोहाघाट। किसानों की आय दोगुना करने के लिए हालांकि फल उत्पादन पर जोर दिया जा रहा है, लेकिन इसके साथ मौन पालन कार्यक्रम को जोड़ने के प्रयास नहीं किए जा रहे हैं।बागवानी और मौनपालन एक दूसरे के पूरक ऐसे व्यवसाय हैं यदि दोनों की जुगलबंदी हो जाए तो सोने में सुहागा वाली कहावत चरितार्थ हो जाएगी। इससे न केवल फल उत्पादन में वृद्धि होगी बल्कि शहद का भी अधिक उत्पादन होगा। फल वृक्षों में परागण के कारण फलों की गुणवत्ता में भी आशातीत सुधार व स्वाद का जायका बदल जाता है ।फल वृक्षों में फ्लावरिंग के समय यदि मौन आ जाएं तो इससे न केवल पेड़ में फल अधिक टिकते हैं तथा उत्पादन पर भी इसका 30 से 35 फ़ीसदी तक प्रभाव पड़ता है ।हिमाचल में वहां के बागवान पोलिनेशन के लिए पंजाब हरियाणा आदि राज्यों से आने वाली मौनो की कॉलोनियों के कारण मालामाल हो रहे हैं। कई स्थानों में तो बागवान अपने बगीचे में मौन बक्से रखने का बाकायदा किराया तक लेते हैं।यदि एक एकड़ यानी 20 नाली में बगीचा लगा है तो वहां कम से कम आधा दर्जन मौन बक्से रखे जा सकते हैं ।एक बक्से से 15 से 20 किलो तक शहद पैदा किया जा सकता है।
चंपावत को मॉडल जिला बनाने में इस सोच को उद्यान विभाग धरातल में लाने का प्रयास कर रहा है। जिला उद्यान अधिकारी टी एन पांडे का कहना है कि जिले की जलवायु के मुताबिक सभी प्रजातियों के फलों का क्लस्टर के रूप में उत्पादन करने का प्रयास किया गया है।जिसमें अकेले पच्चीस हजार सेब के पौधे लगाने का लक्ष्य है। इसी के साथ मौन पालन की कालोनियां स्थापित की जारी है। जिले में पहली बार शहद का वर्ष में दो बार उत्पादन प्राप्त करने के लिए मौनो की कॉलोनियों का माइग्रेशन किया जाएगा। जिले में घाटी वाले क्षेत्र अधिक है, जहां शीतकाल में पाले से सभी वनस्पतियां सूख जाती हैं, जिले में घाटी वाले क्षेत्र अधिक है जहां शीतकाल में सभी वनस्पतियां शुख जाती है वही घाटी में इस मौसम में च्यूरा व सरसों फूलने लगती है जिससे मौनो़ को प्राकृतिक आहार मिलेगा। जिले में 100 फ़ीसदी जैविक शहद पैदा करने के प्रयास किए जा रहे हैं। जिसमें भरपूर औषधि गुण होने के साथ इसकी बाजारों में काफी मांग भी अधिक है। बीएचयू का मानना है कि यदि सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो वह दिन दूर नहीं जब लोग शहद को चंपावत जिले की सौगात के रूप में पहचान बनाएंगे।
उद्यान विशेषज्ञ आशीष खर्कवाल का कहना है कि मौन पालन पर्यावरण संतुलन ही नहीं बनाता बल्कि इससे मोम, रॉयल,जौली ,वेजिंग जौल (बूढ़ों को ताकत के कैप्सूल बनाने), मधुमक्खी का जहर एकत्रित कर इससे गठिया की दवा बनाने, प्रोपालिस यानी हाथ-पांव को फटने से बचने के लिए क्रीम बनाने में प्रयोग किया जाता है।वैसे शहद प्रकृति का ऐसा वरदान है जिसमें सभी औषधीय गुण है।