लोहाघाट। पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण के कारण भारतीय सनातन संस्कृति की महान परंपराओं एवं मान्यताओं को धूमिल होने से बचाने के लिए स्वयं यहां के छात्र-छात्राएं आगे आते जा रहे हैं। रोम से आई वैलेंटाइन- डे जैसी सामाजिक बुराई ने यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमंते तत्र देवता की मूल भावना को तार-तार करने का प्रयास किया है। छात्र जीवन में सामाजिक विकृति के खिलाफ यहां भाजपा जिला उपाध्यक्ष मोहित पाठक ने वैलेंटाइन डे को मातृ-पितृ सेवा संकल्प दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत कर समाज में नई चेतना जगाने का काम किया, जिसका युवाओं पर काफी असर भी पड़ा। स्वामी विवेकानंद राजकीय पीजी कॉलेज, विद्या मंदिर एवं ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों में परिवार से मिले संस्कारों ने पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव को प्रवेश ही नहीं करने दिया। बच्चों को ऊंचे संस्कार देते आ रहे शिक्षक प्रकाश उपाध्याय का कहना है कि यदि हम अपनी जड़ों से जुड़े रहेंगे तो बाहरी हवाएं हमें प्रभावित नहीं कर सकती हैं।
छात्रा ज्योति बिष्ट का कहना है कि आज शिक्षा से अधिक संस्कारों की आवश्यकता है। विवेकानंद विद्या मंदिर जैसे शिक्षण संस्थानों तथा दूरस्थ ग्रामीण परिवेश के छात्र-छात्राएं इस सामाजिक महामारी के बारे में जानते तक नहीं हैं। भारतीय सनातन संस्कृति के मूल्यों के सामने पाश्चात्य संस्कृति कहीं नहीं टिकती है। हम इस दिन को मातृ-पितृ देवो भव के रूप में मनाते हैं।

छात्र रोहन जोशी का कहना है कि हमारी महान सांस्कृतिक विरासत हमें जीवन के हर क्षेत्र में आचार-विचार व संस्कारों से बंधे रखती है। यही वजह है कि ऐसे परिवेश में रहने वालों पर पाश्चात्य संस्कृति की हवा का कोई असर नहीं पड़ता है।

छात्रा नेहा का कहना है कि पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव को रोकने के लिए हमें अपनी महान संस्कृति के अनुरूप अपने को ढालने, सनातन परंपराओं व संस्कारों से आत्मसात करने से जिस प्रकार पाखाने में रहने वाला कीड़ा घी में रखने से मर जाता है ठीक वही स्थिति पश्चात संस्कृति की भी हो जाएगी।
