
लोहाघाट। गुंमदेश क्षेत्र के प्रसिद्ध, ऐतिहासिक, पौराणिक एवं धार्मिक चैतौला मेले के दूसरे दिन आज चमू देवता की भव्य सिंहासन डोला यात्रा निकली, जिसके हजारों लोग साक्षी बने। मडगांव में रात भर चमू देवता की शान में लोक गीतो का गायन किया गया। सुबह सिंहासन डोले की विधिवत पूजा अर्चना की गई। यहां के वीर राजपूत धौनियो के चार गांव सीलिग, चौपता, न्योलटुकड़ा, बसकुनी मैं आज सुबह त्यौहार मनाया गया। जबकि क्षेत्र के अन्य गांव में गुरुवार को ही त्योहार मना लिया गया था। धोनियो के गांव में पारंपरिक रूप से बनाए गए प्रसाद के रूप में पापड को तलकर आज सबसे पहले चंमदेवल में चमू देवता को मंदिर में अर्पित किया गया। दोपहर को मडगांव से शोभायात्रा निकली। इस दफा चमू देवता के डांगर लक्ष्मण सिंह के अस्वस्थ होने के कारण उनका केवल सिहासन डोला मंदिर तक गया।
इसके बाद चमू देवता की शोभायात्रा शुरू हुई। यात्रा के साथ हर गांव के लोग पगड़ी पहन कर जत्थो के रूप में शामिल होते गए। मार्ग में रतन खुटखुटी स्थान में कुछ समय के लिए चमू देवता सिंहासन डोले को नीचे उतारा गया। ऐसी मान्यता है कि गुमदेश के राजा द्वारा इस स्थान में चमू देवता को डोले से नीचे उतरने का आदेश दिया गया था। आज भी राजा के आदेशों का पालन करते हुए चमू देवता कुछ दूरी तक के लिए डोले से उतरकर पैदल चलते हैं। हालांकि गुमकोट के राजा को चमू देवता द्वारा श्राप दिए जाने के बाद उनका किला ध्वस्त होकर गुम हो गया था। तभी से इस क्षेत्र को गुम देश कहा जाता है। इसके बाद शोभायात्रा मंदिर में पहुंचने के बाद परिक्रमा की गई।

इसी के साथ पूरा मेला प्रांगण लोगों से भर गया। यहां मेरठ, बरेली, मुरादाबाद, हल्द्वानी, आदि तमाम स्थानों से व्यापारी आए हुए हैं।मौसम की खराबी के चलते उनका कारोबार काफी धीमा रहा। यहां लगातार एक घंटे तक ओलावृष्टि होने के कारण तापमान में काफी गिरावट आ गई। व्यापारियों का कहना है कि मौसमी मार से कमाना तो दूर वह अपनी जेब भी खाली कर चुके हैं।मेले में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए कोतवाल इंद्रजीत सिंह के नेतृत्व में व्यापक पुलिस फोर्स तैनात किया गया था। एसएसबी के जवानों द्वारा भी निगरानी रखी जा रही थी। मेले में किसी प्रशासनिक अधिकारी को नहीं देखा गया। मेले के आयोजन में गांव के युवा सहयोग कर रहे थे। संपूर्ण मेले की कमेंट्री हरीश चंद्र कॉलोनी एवं आचार्य मदन कॉलोनी द्वारा की जा रही थी।