युवाओं के उड़ते जा रहे अरमानों में कौन करेगा इनका भविष्य सुनिश्चित?
लोहाघाट ।पटवारी भर्ती परीक्षा का भी पेपर लीक हो गया ।होना भी था ,क्योंकि बेईमानी की जड़े राज्य स्थापना के समय से ही गहराती जा रही है ।यूकेएसएससी परीक्षाओं में पेपर लीक करने वाले लोगों के कानूनी शिकंजे में आने से यह उम्मीद जगी थी कि ,अब नए वर्ष से परीक्षाएं ऐसे स्वच्छ एवं पारदर्शी वातावरण में संपन्न होंगी जिनमें उत्तराखंड के परीक्षा देने वाले युवाओं का भविष्य सुरक्षित होगा।मेधा का सम्मान होगा ,मेधावी की वास्तविक तस्वीर सामने आएगी ।भर्ती में शामिल युवाओं को यकीन होने लगा था कि परीक्षाओं में पैसे का नहीं काबिलियत की कद्र होगी ।भर्तियों में की जाने वाली हेराफेरी का दौर 2022 के साथ ही चला गया होगा ,लेकिन राज्य में भर्ती की परीक्षाएं उत्तराखंड लोक सेवा आयोग द्वारा संचालित किए जाने के बाद परीक्षाओं के पवित्र वातावरण में संपन्न होने का नया दौर शुरू होने की उम्मीदें थी, जो फिर पेपर लीक होने के साथ कपूर की तरह उड़ गई ।उत्तराखंड राज्य बनने के बाद विधानसभा में हुई भर्तियों में जब स्पीकर भी इस खेल में खिलाड़ी बन गए, तो ऐसे राज्य में युवा अपना भविष्य कितना सुरक्षित मानेंगे ? जहां बाड़ ही खेत को खा जा रही हो ।इस संबंध में युवाओं ने यू व्यक्त की अपने दिल की भावनाएं।
बॉक्स-हिमांशु सिंह का कहना है कि उनके सामने सवाल यह पैदा हो गया है कि हाड़तोड़ मेहनत के बाद अब परीक्षा देने जाए तो कहां जाएं? सरकार द्वारा कड़े कदम तो उठाए गए लेकिन खून में मिली बेमानी तो यूं ही नहीं जाएगी।नेताओं की शह पर पेपर लीक करने वालों की चमड़ी इतनी मोटी हो गई है कि उस पर सहसा कोई असर नहीं होने वाला है।
बॉक्स-मुन्ना सिंह का कहना है कि वह पढ़ाई करें तो किसके लिए? पेपर लीक की लगातार घटनाओं ने तो युवाओं का मनोबल कमजोर कर दिया है। ऐसी बेईमान व्यवस्था में हम अपने माता-पिता को क्या जवाब दें? जो अपना सब कुछ हमारे भविष्य को संवारने के लिए दांव पर लगाकर हमारी ओर टकटकी निगाह लगाए हुए हैं।
बॉक्स-रोहित कुमार का कहना है कि भर्ती घोटाले की जांच तो अब सीबीआई जैसी विश्वसनीय एजेंसियों से किया जाना समय की आवश्यकता बन गया है पेपर लीक कर युवाओं के भविष्य के साथ खेलने वाले सामान्य लोग नहीं है। ऐसे दमदार है जिन पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए।
बॉक्स-अमरीन कुरैशी का कहना है कि हमारा मनोबल एवं भविष्य के सपने चकनाचूर हो चुके हैं। सरकारी दावों एवं जमीनी हकीकत के विरोधाभाषों ने युवाओं के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है कि वह पढ़ें तो किसके लिए? परीक्षा देंगे तो वही होगा जो पहले से चलता आ रहा है।