लोहाघाट – हरे भरे वनों को आग से बचाने में हम सब की स्थिति ठीक वैसे ही हो रही है कि हम जलते हुए दीपक में घी न डालकर उसके बुझाने के बाद घी डालकर पछतावा करते हैं ।वन धान, गेहूं की तरह हर साल पैदा नहीं होते हैं । जंगल को अस्तित्व में आने पर कई पीढ़िया लग जाती है और उसमें आग लगने पर हमारी पीढ़ियों के प्रयास कुछ ही घण्टो में आग के घूए में उड़ जाते हैं । यह बात वन पंचायत मायावती के जंगल को देखने के बाद डीएफओ नवीन चंद्र पंत ने कहीं । डीएफओ ने यहां के पंचायती जंगलो को उत्तराखंड का मॉडल जंगल बताते हुए कहा यह ऐसा जंगल है जो मानवीय दखल से दूर रहते हुए इसमें अद्वैत आश्रम मायावती के विद्वान एवं नर को नारायण मानकर उनकी सेवा में लगे संतों की आत्मा बसी हुई है । जंगलों को हवा और पानी का प्राकृतिक बैंक बताते हुए डीएफओ का कहना है कि यहां के लोग कितने खुशनसीब हैं जिन्हें हरे भरे जंगलों के बीच शुद्ध हवा पानी मिल रहा है । यदि जंगलों को आग से नहीं बचाया गया तो शुद्ध हवा पानी से मनुष्य की क्या स्थिति होगी इसका अंदाजा हर व्यक्ति को लगाते हुए अपने भविष्य के प्रति गंभीरता से चिंतन करना होगा ।