लोहाघाट। मौसम चक्र में आए बदलाव के कारण अब जिले में सेव की डिलीशियस प्रजातियों का उत्पादन लगभग समाप्ति की ओर है। इसके स्थान पर कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने औषधीय गुणों से भरपूर किवी का उत्पादन करना शुरू कर दिया है जिससे किसानों का खेत से पारंपरिक नाता बना रहे। कीवी उन स्थानों को छोड़कर सभी स्थानों में पैदा की जा सकती है जहां आम,लीची, कटहल पैदा होती है । कृषि विज्ञान केंद्र की उद्यान वैज्ञानिक डॉ रजनी पंत ने प्रारंभिक चरण में कीवी की आधा दर्जन प्रजातियों में एलीफेंन, हैवर्ल्ड, मोंटी और तैमूरी प्रजातियों को तैयार कर इसके पौध वितरण का भी कार्य शुरू किया है । यहां की जलवायु में एलीफैन प्रजाति काफी मुफीद मानी गई है। इसके लिए विशेष मिट्टी की आवश्यकता भी नहीं होती है अलबत्ता शुरुआती तीन वर्षों तक पौधों को पानी की आवश्यकता होती है। यह तीन वर्ष में फल देने लगता है। एक पेड़ से 60 से 70 किलोग्राम तक पैदावार की जा सकती है।
चंपावत जैसे जिले में तो जैविक कीवी तैयार की जा रही है ।जिसकी औषधीय गुणवत्ता अन्य स्थानों की तुलना में अधिक होती है ।डॉ पंत का कहना है कि कीवी का बाजार भाव ढाई से तीन सौ प्रति किलो का है कीवी का फल विटामिन सी का अच्छा स्रोत है इसके अलावा यह कैंसर,खून की कमी दूर करने, पाचन शक्ति बढ़ाने,प्लेटलेट को नियंत्रित करने के अलावा रक्त संचार को सुचारू बनाए रखता है। केंद्र की प्रभारी अधिकारी डॉ अमरीश सिरोही का कहना है कि मौसम चक्र में आ रहे बदलाव के कारण खेती के तौर तरीके भी बदलते जा रहे हैं।जिससे किसानों का खेती से मोह भंग होता जा रहा है।यह समाज और राष्ट्र के लिए चिंता का विषय है । केंद्र के वैज्ञानिक यहां की जलवायु के अनुरूप विकल्प तलाशने के कार्य में लगे हुए हैं। कीवी पर यहां शोध किये जाने के बाद यह सेव की उन प्रजातियों का विकल्प बन चुका है जो मौसमी मार से अपना वजूद खो चुके हैं । इसके अलावा केंद्र द्वारा अन्य तमाम ऐसे प्रयास किए जा रहे हैं जिससे किसान निराश नहीं बल्कि उसकी आय दोगुनी हो सके।
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एनजीओ का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं विभाग।
लोहाघाट। पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र के युवा वैज्ञानिक चंपावत जिले को नई दशा व दिशा देना चाहते हैं लेकिन इनकी ऊर्जा का दोहन नहीं किया जा रहा है । केंद्र में युवा वैज्ञानिकों की टीम के आने के बाद उनके द्वारा लगातार नित नए अनुसंधान किए जा रहे हैं तथा इनमें कार्य करने की अभूतपूर्व क्षमता एवम् जज्बा भी है। लेकिन जिले के उद्यान,कृषि एवं खेत से जुड़े अन्य विभागों के लोग एनजीओ का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं । जबकि यह एनजीओ प्रशिक्षण के नाम पर केवल फोटो खींचने के अलावा कुछ नहीं करते हैं । उद्यान विभाग मौन पालन के नाम पर एनजीओ को प्रशिक्षण के लिए लाखों रुपए दे चुका है लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात ही निकले हैं। आज जबकि चंपावत को मॉडल जिला बनाने की बात की जा रही है, लेकिन यह विभाग अपनी सोच व कार्य संस्कृति को नहीं बदल रहे हैं।जबकि कृषि विज्ञान केंद्र में प्रशिक्षण दिए जाने से प्रशिक्षणार्थियों को प्रैक्टिकल एवं थ्योरिटिकल दोनों प्रकार के प्रशिक्षण मिलते।