लोहाघाट। सुहावने मौसम में नगर तथा ग्रामीण क्षेत्र के लोगों का रुख उत्तर दिशा की ओर यहां से चार किलोमीटर दूर ऊंची पहाड़ी में स्थित मां झुमाधुरी मंदिर की ओर था। यहां चल रहे चार दिवसीय मां झुमाधुरी नंदाष्टमी महोत्सव के अंतिम दिन पाटन – पाटनी गांव से मां भगवती व राईकोट महर गांव से मां भगवती व महाकाली की भव्य व दिव्य शोभा यात्राएं निकली जिसमें हजारों लोग शामिल हुए। दोनों गांव में कल रात भर देवडागर अवतरित हुए। पाटन – पाटनी गांव के पाल देवती मंदिर से पहले भगवती की शोभायात्रा निकली जिसमें भगवती के डांगर उमेश पाटनी एवं धन सिंह पाटनी इसी प्रकार रायकोट महर से निकली शोभायात्रा में कालिका के रूप में राधिका देवी जबकि भगवती के के रूप में दान सिंह रथ में विराजमान हुए। दोनों रथो की शोभायात्रा में हजारों लोग शामिल हुए। मंदिर की तलहटी में स्थित विश्व देव मंदिर में शोभा यात्राओं ने कुछ समय के लिए विश्राम किया। जहां देवडागरो को दूध व चावल का भोग लगाया गया। पहले देवडागरों को भोग लगाते समय यहां कुछ अदृश्य शक्तिया होने का आभास होता था। जिन्हें पुकारने पर वे गायब हो जाती थी। पहले इस स्थान में बली दी जाती थी जो समय के अब बन्द हो गई है। इस स्थान से मंदिर जाने के लिए खड़ी चढ़ाई शुरू हो जाती है। देवी के उपासकों द्वारा रस्सो से खींच कर झुमाधुरी की ऊंची पहाड़ी मैं ले जाया गया। जहां दोनों रथ ने मंदिर की परिक्रमा की तथा रथ से उतरकर देव डागरो ने सभी को अपना आशीर्वाद दिया। इसके बाद पूरा मेला प्रांगण लोगों से खचाखच भर गया। तथा आसमान से वर्षा की हल्की फुहारों ने मां भगवती व मां महाकाली का अभिषेक किया। यहां पिछले कई वर्षों से झुमाधुरी नंदाष्टमी महोत्सव का आयोजन होने के कारण अब मंदिर की तलहटी में भी मेला लगने लगा है।
अत्यधिक ऊंचाई में होने के कारण यहां से हिमालय की नंदादेवी, त्रिशूल, पंचाचुली के अलावा हिमालय की लंबी पर्वत श्रृंखला एवं चम्पावत, अल्मोड़, नैनीताल, बद्रीनाथ की ऊंची पहाड़ियां का विहंगम दृश्य दिखाई देता है। इस स्थान के कुछ दूरी पर पहले मां के चरणों से गुप्त झरना प्रवाहित होता था। इसके स्थान पर आज भी यहां साक्ष के रूप में नौला है। मंदिर के दाहिनी ओर ऊंची चोटी में कफफाण नामक स्थान में देवी की मूल शक्ति बताई जाती है। सुगमता की दृष्टि से निसंतान राजमिस्त्री दंपति को स्वप्न में इसी स्थान में मंदिर स्थापित करने का आदेश दिया था। यहा रात भर निसंतान महिलाओं ने जहा उपवास रखकर हाथ में दीया लेकर मां का गुणगान किया तथा सुबह दोनों रथो की परिक्रमा के बाद उनका उपवास समाप्त हुआ। कहा जाता है कि मां के प्रसन्न होने का एहसास निसंतान महिलाओं को वहीं पर होने लगता है। रात भर मंदिर में देवी जागरण हुआ तथा कई श्रद्धालुओं ने यहां भंडारा लगाया था। इसमें भी हजारों लोग शामिल हुए। इस मेले को देखने के लिए पाटन – पाटनी, रायकोट कुंवर एवं महर के लोग चाहे कहीं भी हो मां का आशीर्वाद लेने के लिए अवश्य आते हैं। ग्राम पंचायत पाटन पाटनी एवं महोत्सव आयोजन समिति के लोग मेले में नागरिक सुविधा उपलब्ध कराते आ रहे हैं। अब मंदिर में पहुंचना पहले की तुलना में काफी आसान हो गया है। मंदिर में पानी व बिजली की सुविधा भी मिलने लगी है। यहां लोहाघाट समेत हल्द्वानी, बरेली, मुरादाबाद, पीलीभीत आदि स्थानों से सैकड़ो व्यापारी आए हुए थे। भारी भीड़ के चलते उनके चेहरे खिले हुए थे अलबत्ता अन्तिम क्षणों में वर्षा होने के कारण लोगों को सर ढकना मुश्किल हो गया। मेले में पुलिस का तगड़ा बंदोबस्त किया गया था। प्रभारी निरीक्षक अशोक कुमार के अनुसार मेले के चप्पे-चप्पे में पुलिस फोर्स व सादी वर्दी में पुलिस तैनात की गई थी। जिससे कोई भी अप्रिय घटना नही घटी। सीओ वंदना वर्मा ने भी मेले में भ्रमण किया। मेले के आयोजन में दोनों गांवों के युवा दिन भर व्यवस्था में जुटे रहे।