चंपावत। 95 फ़ीसदी वोट देकर सीएम पुष्कर धामी को देश में जीत का ऐतिहासिक रिकॉर्ड बनाने वाली चंपावत विधानसभा के लोगों के प्रति श्रद्धा एवं कृतज्ञता का भाव रखने वाले मुख्यमंत्री ने चंपावत को हिमालयी राज्यों का मॉडल जिला बनाने की जो घोषणा की थी, उसी दिन से विकास की सोच रखने वाले अधिकारियों ने अपनी प्लानिंग शुरू कर दी थी। इस ऐतिहासिक कार्य को संपादित करने के लिए स्वयं मुख्यमंत्री द्वारा पहले यहां डीएम के रूप में नौजवान नरेंद्र सिंह भंडारी को भेजा। उसके बाद उनके विदेश जाने पर जिले को ठेठ ईमानदार एवं कभी न थकने वाले डीएम के रूप में नवनीत पांडे को भेजा गया, जिनके पास विकास की सोच तो है, लेकिन क्रियान्वयन के लिए अधिकारी नहीं हैं। जो जिम्मेदार अधिकारी हैं भी, उनकी स्थिति फूके कारतूस जैसी है। वैसे लीक से हटकर अभी तक पर्यटन अधिकारी अरविंद गौड़, डीएचओ टीएन पाण्डे, कृषि एवं भूमि संरक्षण अधिकारी हिमांशु जोशी ने अपने विभागों का काम दिखाया है। जिले की प्रभारी मंत्री रेखा आर्य से क्या अपेक्षा की जा सकती है? जो जिला योजना की बैठक तक जिला मुख्यालय में करने के बजाय दो बार आनन-फानन में टनकपुर में बैठक कर चुकी हैं। उन्होंने अपने विभाग के यहां खाली चल रहे डीएसओ एवं जिला कार्यक्रम अधिकारी के पदों पर नियुक्तियां तक नहीं की। शिक्षा विभाग की हालत दयनीय बनी हुई है। यहां मुख्य शिक्षा अधिकारी समेत डीईओ माध्यमिक, डीईओ प्रारंभिक शिक्षा, लोहाघाट एवं चंपावत के बीईओ,चारों ब्लॉकों के उप शिक्षा अधिकारियों के पद खाली हैं।
शिक्षा भवन में हर समय चहल पहल बनी रहती थी, वाहां कब्रिस्तान जैसी शांति बनी हुई है। एक ईमानदार एवं काम करने वाले सीईओ जितेंद्र सक्सेना को यहां से हटाकर उन्हें इतना प्रताड़ित किया गया कि उन्होंने सेवानिवृत्ति से पहले ही विभाग से तौबा करने की अर्जी लगा दी है। इस निर्दोष ईमानदार अधिकारी के आंसू क्या गुल खिलाएंगे यह समय ही बताएगा। लंबे समय से पाटी के एसडीएम व जिले की सभी पांचो तहसीलों में प्रभारी तहसीलदार हैं। यही नहीं डीआरडीए के परियोजना निदेशक, डीपीआरओ व जिला प्रोविजन अधिकारी, सहायक निबंधक सहकारिता, जिला कार्यक्रम अधिकारी के पद खाली हैं। यहां के जिला विकास अधिकारी को शासन में संबद्ध किया गया है, जिसका वेतन बाकायदा चंपावत से निकलता है। ऐसा कौन दमदार अधिकारी है, जिसके हस्ताक्षरों से इस अधिकारी को शासन में संबद्ध किया गया है? ऐसे हालातों में तो यहां कोई नया डीडीओ आ ही नहीं सकता। जिले में वन विभाग की एसीएफ,लोहाघाट नगर पालिका के ईओ के पद भी खाली हैं। एसीएमओ के पद
पर तैनात डा रश्मि पंत को भी यही जिला रास आया, जहां से वह दो साल के लिए ट्रेनिंग में चली गई हैं।
मुख्यमंत्री के मॉडल जिले में अभी तक कोई जलागम परियोजना भी नहीं है। मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए यहां का बौद्धिक तबका यह महसूस करता है कि स्वयं श्री धामी के कैबिनेट के सहयोगी ही यहां अधिकारियों को क्यों और किन परिस्थितियों में तैनात नहीं कर रहे हैं? यह विषय गंभीर चर्चा का बना हुआ है। लोगों का कहना है कि स्वयं मुख्यमंत्री का जिला होने के कारण यहां हर क्षेत्र में स्वाभाविक रूप से प्राथमिकता मिलनी चाहिए थी। ऐसा न कर कौन चंपावत जिले की ढाई लाख की आबादी के अरमानों में पानी फेर रहा है? इस पर उच्च स्तर पर चिंतन और मनन तो अवश्य किया जाना चाहिए कि कहीं मुख्यमंत्री की परिकल्पनाओं को साकार करने में जानबूझकर अड़चनें तो पैदा नहीं की जा रही है।