लोहाघाट। आज चिकित्सा पेशे में मानवीय संवेदनाएं जिस तेजी के साथ कम होती जा रही हैं, ऐसे सामाजिक परिवेश में भी यदि कोई निस्वार्थ भाव से नर को नारायण मानकर उनकी मुफ्त चिकित्सा कर गरीबों को नया जीवन दे रहा हो तो समझ लेना चाहिए कि यह स्थान कितना दिव्य होगा एवं इस कार्य से जुड़े लोग कितने महान होंगे। यह वही स्थान है, जहां 123 वर्ष पूर्व युग पुरुष स्वामी विवेकानंद जी के चरण पड़ने से पवित्र एवं विख्यात हुआ अद्वैत आश्रम मायावती एवं इसके द्वारा संचालित धर्मार्थ चिकित्सालय है। यह चिकित्सालय 121 वर्ष पूर्व उस समय खोला गया जब समूचे क्षेत्र में कोई भी चिकित्सा सुविधा नहीं थी। 1935 में कैलाश मानसरोवर यात्रा से लौटते वक्त बीमार पड़े मोरबी नरेश (राजा) का इसी अस्पताल में एक सप्ताह तक उपचार हुआ। जब वह पूर्ण स्वस्थ हुए तो तब उन्होंने अपना परिचय दिया। यहां की सेवा से वह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने यहां के रोगियों के लिए दो मंजिला अस्पताल का भवन बना बनवा दिया जो आज भी उनकी यादों को तरोताजा किए हुए है। यहां आश्रम की ओर से विशेषज्ञ डाक्टरों को आमंत्रित कर विशेष कैंप लगाए गए। पिछले कई वर्षों से तो यहां वर्ष भर प्रायः सभी रोगों के विशेषज्ञ डॉक्टर अपनी सेवाएं समय-समय पर देते आ रहे हैं। जो वर्ष भर में पचास हजार रोगियों को आरोग्य प्रदान करते आ रहे हैं। यही नहीं जिन गरीब रोगियों का यहां उपचार संभव नहीं होता है, ऐसे रोगियों को श्री रामकृष्ण मिशन द्वारा संचालित अन्य चिकित्सालयों में भेज कर उनका मुक्त उपचार कराया जाता है। यहां देश के कोने-कोने से ही नहीं विदेशों से भी डॉक्टर अपनी सेवाएं देने आते हैं। वर्ष 2012 में चिकित्सालय का बड़ा भवन बन गया है, जहां नेत्र ऑपरेशन के लिए उच्च स्तरीय ऐसा ऑपरेशन थिएटर है जो जिले में कहीं भी नहीं है। आश्रम के अध्यक्ष स्वामी शुद्धिदानंद जी महाराज ने जब देखा कि ग्रामीण रोगियों के पास आने-जाने के साधन नहीं है तो उनके लिए ऐसी बस चलाई गई है जिससे रोगी को घर से लाकर उपचार के बाद उन्हें घर तक मुफ्त में छोड़ा जाता है। चिकित्सालय के प्रभारी स्वामी एकदेवानंद जी महाराज के नेतृत्व में चिकित्सालय द्वारा दूर-दराज के गांवों में भी मेडिकल कैंप लगाकर न केवल उनका उपचार किया जाता है, बल्कि गरीबों को कंबल, जैकेट, बच्चों के कपड़े आदि भी वितरित किए जाते हैं। स्वामी जी के नेतृत्व में जिस भाव से गरीबों की जो सेवा की जा रही है, आज के समय में उसे देखते हुए ऐसा लगता है कि यहां सेवा के सब काम किसी ईश्वरीय शक्ति द्वारा ही अदृश्य रूप से संचालित किये जा रहे हैं।