लोहाघाट| 12 जनवरी 1901 को स्वामी विवेकानंद ने अपना 38वा जन्म दिवस मायावती आश्रम में मनाया था| तीन जनवरी, 1901 को स्वामी काठगोदाम से पैदल व घोड़े में सवार होकर मायावती आश्रम पहुंचे थे| तब उनके साथ स्वामी शिवानंद एवं स्वामी सदानंद थे तथा उन्हें लेने के लिए मायावती आश्रम से स्वामी विरजानंद एवं प्रबुद्ध भारत के संपादक स्वामी स्वरूपानंद गए थे| तीन जनवरी को जब स्वामी यहां पहुंचे तो प्रकृति ने श्वेत चादर बिछाकर उनका स्वागत किया| चारों ओर की पहाड़ियां बर्फ से ढकी हुई थी| हालांकि ठंड एवं थकान के कारण उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं था किंतु यहां के प्राकृतिक नजारे को देखकर वह सब कुछ भूल गए| कुछ दिन बाद मौसम खुलने पर जब वे आश्रम से डेढ़ किलोमीटर दूर ऊंची पहाड़ी में स्थित धरमघर स्थान में जाकर वहां से हिमालय की केदारनाथ से लेकर नेपाल तक 180 डिग्री कोड में बनी हिमालय की बर्फ से ढक़ी पहाड़ियों क़ो देखकर इतने खुश हो गए मानो उनकी स्वर्ग की कल्पना, धरती में साकार हो गई हो| स्विट्जरलैंड के अल्फस पर्वत क़ो देखकर उन्होंने भारत के हिमालयी क्षेत्र मै इस प्रकार के दृश्य होने पर,वहा अपना शेष जीवन बिताने क़ी इच्छा व्यक्त क़ी थी|यहां उन्हें उससे कहीं अधिक सुंदर और सुरम्य स्थान मायावती के रूप में मिल गया, जहां आने पर व्यक्ति ईश्वरीय सत्ता से सीधा साक्षात्कार करने लगता है| विश्व प्रसिद्ध आध्यात्मिक पत्रिका प्रभुद्ध भारत के संपादक स्वामी दिव्यकृपानंद महाराज का कहना है कि स्वामी के यहां चरण पडना एक युगान्तकारी घटना थी, तब से यह स्थान दिव्य व भब्य बनकर दुनिया के लोगों की आस्था का केंद्र बन गया| उधर मायावती प्रवास के दौरान ही स्वामी ने 12 जनवरी1901 को जीवन का 38वा बसंत देखा था|ईसी दिन उनका जन्म हुआ था|अपने जन्मदिन पर स्वामी ने आइसक्रीम खाने की इच्छा व्यक्त की थी तथा वहीं जमी बर्फ से स्वामी विरजानंद ने आइसक्रीम तैयार कर सबको बाटकर ख़ुशी का इजहार किया| हालाकि उस दौरान ठंड पूरे यौवन पर थी, किंतु यहां का भव्य व दिव्य नजारा देखते उनकी आंखें थकी नहीं| उनका कहना था कि यहां रहने वाले लोग कितने भाग्यशाली हैं, जिन्हें इस सुरम्य स्थान में रहने का ईश्वर ने अवसर दिया है|
