लोहाघाट। जब से मनुष्य ने प्रकृति से अनादिकाल से चले आ रहे रिश्तों से नाता तोड़ा, तभी से प्राकृतिक संतुलन बिगड़ने एवं यहां तक कि हिमालय भी आग उगलने लगा है। वातावरण में कार्बन डाइ ऑक्साइड की मात्रा बढ़ने से ओजोन परत कमजोर पड़ती जा रही है, जिससे ध्रुवों की तरफ पिघलने से समुद्र के पानी की सतह ऊंची होती जा रही है। वैज्ञानिकों ने समय रहते इस खतरे की भांपते हुए 16 सितंबर को विश्व ओजोन संरक्षण दिवस मनाने का निर्णय लिया। इससे वैश्विक स्तर पर ओजोन के प्रति जागृति पैदा होने के साथ सीएफसी गैसों के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाना तो संभव हुआ लेकिन वायुमंडल में पहुंचे इसके असंख्य कणों की सफाई करने में तो दशकों लग जायेंगे। वैश्विक स्तर पर क्लोरोफ्लोरो गैस के प्रयोग पर पाबंदी लगाई गई है। जब तक वायुमंडल में पहले से ही डेरा डाले अणु को समाप्त करने में तो कई दशक लग जाएंगे। क्लोरो-फ्लोरो ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाली सबसे खतरनाक गैस मानी जाती है। पर्यावरण प्रदूषण के चलते धरती पर आठ सौ जीवों की प्रजातियां समाप्त हो चुकी हैं तथा इससे अधिक प्रजातियां अपने वजूद के लिए संघर्ष कर रही हैं। मानव की असंख्य आबादी के लिए अब स्वच्छ हवा व पानी नसीब न होने के कारण वह तमाम बीमारियों से घिरते जा रहे हैं।
पर्यावरणविद एवं वन संरक्षण पर निरंतर जोर दे रहे प्रकाश चन्द्र उपाध्याय का कहना है कि मानव ही मानव के लिए गंभीर संकट पैदा करता जा रहा है। कीटनाशक रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग,वनों का विनाश, फलों और सब्जियों को जल्दी पकाने के लिए प्रयुक्त होने वाले खतरनाक रसायनों का प्रयोग, वातानुकूलित कमरों में रहने के आदी लोग दूसरों के लिए तो समस्याएं पैदा कर ही रहे हैं, इन्होंने स्वयं भी अपने जीवन को तमाम बीमारियों के हवाले कर दिया है।
राजकीय पीजी कॉलेज के भौतिक विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ एसपी सिंह का कहना है कि ओजोन परत को प्रभावित करने का कारक स्वयं मनुष्य है। ओजोन को प्रभावित करने वाली गैसों का प्रयोग बंद कर इसके स्थान में एचसीएचसी गैसों का प्रयोग किए जाने से हालांकि ओजोन परत को कवच मिला है, लेकिन वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता के कारण लगातार तापमान बढ़ता जा रहा है। ओजोन परत जमीन से 25 -30 किमी की ऊंचाई में होती है, जो सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों को 99 फ़ीसदी तक रोक लेती है। यदि ओजोन परत इसे न रोके तो मनुष्य का त्वचा संबंधी रोगों व कैंसर से बुरा हाल हो जाएगा।
डीएफओ आरसी कांडपाल का कहना है कि लगातार वनों के विनाश से पर्यावरणीय समस्या एवं आपदाएं पैदा होती जा रही हैं । यदि हम लगातार धरती के नग्न स्वरूप को पेड़ों से आच्छादित करते रहे तो इससे पेड़ों द्वारा वातावरण में फैली कार्बन डाइऑक्साइड को सोखने से तापमान को नियंत्रित करना संभव होगा। हर प्रकार के प्रदूषण पैदा करने वाले कारकों का प्रयोग बंद कर हमें प्रकृति से आत्मसात करना होगा। इसी से मनुष्य अपना वजूद कायम कर सकता है।