लोहाघाट। उत्तराखंड में नया व सख्त भू कानून लागू करने की मांग ऐसे समय में उठी है, जब राज्य के मूल निवासियों को अपना वजूद ही समाप्त होता दिखाई दे रहा है। लोगों को उत्तराखंड राज्य निर्माण के लिए किया गया संघर्ष ऐसा लग रहा है कि उन्होंने गैर उत्तराखंडियों को नैसर्गिक अधिकारों से टापते रखकर ऐसे लोगों को यहां बसने की दावत दी है, जिनसे देवभूमि के लोगों की संस्कृति मिलती है न प्रवृत्ति। यही वजह है कि 23 साल के उत्तराखंड को ऐसा धर्मशाला बना दिया गया है, जहां देश-विदेश का कोई भी व्यक्ति रह सकता है। औद्योगीकरण के नाम पर राज्य के स्थानीय लोगों को 70% रोजगार से जोड़ने की बातें जमीनी हकीकत तो नहीं बन पाई, इसके ठीक विपरीत राज्य की काफी भूमि पर बाहरी लोगों का कब्जा हो गया। उत्तराखंड में हुए इन्वेस्टर समिट एवं उत्तराखंड में देश के लोगों के शादी विवाह के लिए आने का पीएम मोदी का आह्वान जहां विकास के नए आयाम जोड़ेगा, लेकिन कोई भू कानून न होने के कारण काफी संभावना है कि पहाड़ की चोटियों व तलहटियों में ऐसे लोगों द्वारा होटल का निर्माण किया जाएगा, जिनकी संस्कृति व प्रवृत्ति यहां के लोगों से मेल नहीं खाती है। उत्तराखंड राज्य निर्माण के लिए अपना सर्वस्व से न्योछावर करने वाले शीर्ष पंक्ति के नेता एडवोकेट नवीन मुरारी उत्तराखंड को धर्मशाला बनाए जाने से बेहद आहत हैं। उनका कहना है कि विगत दिनों देहरादून में सख्त भू कानून बनाने की मांग को लेकर युवाओं का आंदोलन ही नहीं बल्कि उनकी आत्मा बोल रही थी। उनका कहना है कि राज्य बनने के बाद तिवारी सरकार ने 500 मीटर से अधिक जमीन पर रोक लगाई थी, जबकि सीएम खंडूरी द्वारा इसे घटकर ढाई सौ मीटर कर दिया गया था। किंतु त्रिवेंद्र सरकार ने सबके आदेश रद्द कर पहाड़ के लोगों की छाती में दाल दलने के लिए उदार भू कानून बनाकर उत्तराखंड को धर्मशाला बना दिया। श्री मुरारी का कहना है कि उत्तराखंड में कठोर भूमि कानून बनाना एवं मनमाने तरीके से भूमि की की जा रही गई खरीद फरोख्त में तत्काल रोक नहीं लगाई गई तो हम भावी पीढ़ी को ऐसे संकट में छोड़ जाएंगे, जहां उनके लिए आत्महत्या करने।के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा।