लधियाघाटी। लधियाघाटी में चीड़ एवं बाज के वनों से घिरे प्रकृति की गोद में बसे भिगराडा का एडीं बालकृष्ण मेला दो ऐसे दोस्तों की सोच का परिणाम है जिन्होंने इस स्थान में आस्था, संस्कृति एवं लोगों में मेलजोल बढ़ाने के लिए ऐसी पहल की जो आज विशाल मेले के रूप में सामने आई है। दरअसल जब एडीं ब्यानधुरा से शक्ति फटकर फटकशिला मंदिर आई थी तो शक्ति ने मार्ग में भिगराडां स्थान में विश्राम किया था। बाद में यह स्थान एडीं के उपासकों के लिए भव्य व दिव्य स्थान बन गया तथा यहां बाज के पेड़ के नीचे शक्ति की पूजा होने लगी। तब भिगराडा में बालकृष्ण भट्ट नाम के रेंजर आए उनके यहां के प्रमुख समाजसेवी हरि दत्त भट्ट से विचार मिलते से दोनों में प्रगाढ़ दोस्ती हो गई। उन्होंने आपस में विचार किया कि क्यों नहीं जन्माष्टमी के अवसर पर यहां तीन दिनी मेला आयोजित किया जाए। वर्ष 1980 में मेले की शुरुआत की गई। मेले में विभिन्न स्थानों से लोक कलाकार, गायक बुलाए गए। पहले वर्ष में ही इस मेले ने व्यापारिक रूप ले लिया इसके आयोजकों का उत्साह काफी बढ़ गया। इस कार्य में वन कर्मियों ने भी अपना पूरा सहयोग दिया। लधियाघाटी क्षेत्र में अन्य कोई मेला ना होने के कारण इस मेले को काफी ख्याति मिलने लगी। लोगों ने यहां इस स्थान में चबूतरा बनाकर पंडित हरि दत्त भट्ट ने अपनी ओर से यहां बजरंगबली की तथा वन कर्मियों व क्षेत्रीय लोगों के सहयोग से राधा कृष्ण की मूर्तियां स्थापित की गई । तब से प्रतिवर्ष जन्माष्टमी के अवसर पर यहां तीन दिनी मेला आयोजित होता आ रहा है। अब मेले के दौरान स्कूली बच्चों की अनेक प्रतियोगिता भी होती है। इस वर्ष मेला 25 अगस्त से शुरू होगा। मेले में आने वाले लोगों को सुविधा दिए जाने हेतु क्षेत्रीय लोग मेले की व्यवस्था सरकारी तौर पर करने की लगातार मांग करते आ रहे हैं। मेले को लेकर यहां के मंदिर को फूलों से सजाया गया है। चूंकि मेले की शुभारंभ की प्रेरणा रेंजर बाल कृष्ण द्वारा की गई थी। तब से इस मेले के आयोजन में यहां के रेंजर तथा अन्य वन कर्मि लगातार मेले के आयोजन में सहयोग करते आ रहे हैं। वर्तमान में यहां के लोक प्रिय रेंजर हिमालय सिंह टोलियां तथा उनके वन कर्मि मेले के आयोजन में अपना पूरा सहयोग देते आ रहे हैं।