लोहाघाट। पहाड़ों में रसोई गैस आने के बाद वनों पर ईंधन का दबाव तो बहुत कम हो गया है लेकिन घास के लुट्टे लगाने के लिए सीधी लकड़ी या जहां देवदार के वन होते हैं, वहां उस पर अधिक मार पड़ती जा रही है। यही नहीं खीरा,ककड़ी, करेला ,लौकी, तुरई जैसी सब्जियों की बेलों को फैलाने के लिए भी पेड़ों पर ही मार पड़ती आ रही है। इसी प्रकार राजमा की खेती के लिए भी छोटे पेड़ों को ही काटा जाता है जिससे उत्तराखंड में प्रतिवर्ष हजारों छोटे पेड़ों का नुक़सान हो रहा है। यदि लोगों को इसका विकल्प दिया जाए तो इतनी तादाद में पेड़ों को कटने से बचाया जा सकता है। इस कार्य में वर्टिकल फार्मिंग एक अच्छा विकल्प है। घास की लुट्टे लगाने के लिए लोगों को अनुदान पर लोहे के खंभे दिए जाएं।
बेल वाली सब्जियों के लिए तो वर्टिकल फार्मिंग काफी लाभदायक सिद्ध होगी। किसानों को त्रिभुजाकार स्टैग, पंडाल टाइप्स जारी, यू-आकार की तार वाली जाली विशेष अनुदान पर उपलब्ध की जानी चाहिए। एक परिवार को यदि एक बड़ी आकार की पंडाल टाइप जाली दी जाती है तो तो उसमें लौकी, खीरा आदि की बेल डाली जा सकती है। इसी प्रकार यू-आकार की जाली का उपयोग भी इसी कार्य के लिए किया जा सकता है। यह ऐसा विकल्प है जिसमें शुरुआती तौर पर तो धन खर्च होगा किंतु वन एवं पर्यावरण संरक्षण की दिशा में यह मील का पत्थर साबित होगा।
कृषि विज्ञान केंद्र की उद्यान वैज्ञानिक डॉ रजनी पंत का कहना है कि इजरायली यह तकनीक कम भूमि में अधिक लाभ देती है । इसके लिए बकायदा रेडीमेड स्टैंड व जालियां भी मिलती हैं। सब्जियों में इस तकनीक का प्रयोग करने से वन संपदा को बचाया जा सकता है। इससे छतों में भी बेल वाली सब्जियां पैदा की जा सकती हैं। यदि उद्यान विभाग किसानों को स्टेग व तार वाली जाली उपलब्ध कराता है तो इससे पेड़ों का बहुत बड़ा नुकसान रोका जा सकता है।