चंपावत। राजभाषा क्रियान्वयन में सराहनीय योगदान के लिए रेल मंत्रालय द्वारा रेलवे कॉरिडोर के प्रबंध निदेशक हीरा बल्लभ जोशी, राजभाषा रजत पदक से सम्मानित किए जाएंगे। बाराही धाम देवीधुरा के समीप वारी गांव के पुरोहित परिवार में जन्मे जोशी क्षेत्र के पहले आरईएस हैं जो अपनी मेधा व लगन के बल पर सफलता के हर क्षेत्र में गगन छूते आ रहे हैं। यह भारत सरकार के रेल मंत्रालय के डीएफसीसीआईएल जैसे महत्वपूर्ण उपक्रम भी देख रहे है, जिसका उद्देश्य भारत में रेल परिवहन प्रणाली की दक्षता व क्षमता को बढ़ाकर मार्ग परिवहन की लागत को कम करना है। इनके द्वारा कश्मीर में दुनिया के सबसे ऊंचाई में बनाए गए रेलवे पुल के निर्माण में भी उल्लेखनीय भूमिका रही है। जीवन में घोर अनुशासन, कार्य के प्रति समर्पण के कारण इन्हें राष्ट्रपति समेत कई संगठनों द्वारा पुरुस्कृत कर सम्मानित किया जाता रहा है। रेलवे में अपनी उत्कृष्ट सेवाएं देने के बावजूद भी जोशी उच्च कोटि के लेखन व अध्ययन के लिए समय निकाल लेते हैं।
व्यवहार में एकदम सरल, सादगी पसंद जोशी को सनातन के मूल्यों व आदर्शो पर चलने की सीख इन्हें अपने स्व. पिता से विरासत में मिली है। इन्होंने दर्जनों पुस्तके लिखी हैं। जिसमें “गरुड़ पुराण” “सनातन हिंदू एक अद्भुत मानव धर्म” “बाराही मंदिर देवीधुरा” के शीर्षक पर लिखी पुस्तक काफी लोकप्रिय रही है। इनके द्वारा हिंदू धर्म में व्याप्त छुआछूत जैसी विकृतियों का बहुत ही सरल शब्दों में व्याख्या कर यह बताने का प्रयास किया है कि सही मायनों में यह वर्ग ही वास्तविक रूप से सनातन के ऐसे रक्षक रहे हैं जो शताब्दियों से अपने नाम के साथ ” राम” का नाम जोड़कर चले आ रहे हैं। समाज में आचार – विचार और संस्कारों को अपनी पुस्तक में शीर्ष स्थान देने वाले जोशी का मानना है की प्रकृति के साथ ही सनातन की उत्पत्ति हुई है। सनातन को मानने वाले व्यक्ति के विचार ही विश्व को अपने परिवार मानने लगते है। एक पुरोहित परिवार में जन्मे जोशी ने महिलाओं को भी इस “वृत्ति” से जोड़कर एक ऐसे श्रेष्ठ समाज की कल्पना की है। जिसमें छुआछूत के लिए कोई स्थान नहीं है। मां बाराही की गोद में पले जोशी “मां” के अनन्य उपासक हैं तथा इन्हीं की पहल पर पहली बार ” मां बाराही मंदिर ट्रस्ट” की स्थापना की गई है। जिसके पहले अध्यक्ष के रूप में इन्हीं को सम्मान दिया गया है। इन्हीं के द्वारा बाराही धाम में नए राजस्थानी शिल्प कला पर आधारित भव्य मंदिर की परिकल्पना को साकार रूप दिया जा रहा है। जिसमें उत्तराखण्ड एवं दक्षिण भारत के मंदिरों की वास्तुकला का समावेश किया गया है।