लोहाघाट। बच्चों को जन्म देने के बाद स्तनपान कराकर ममतामई मां ही उसकी क्षुधा को शांत करती है। जब मां बच्चे को कोख में लेकर उसे स्तनपान कराती है, उस वक्त वह सब कुछ भूल कर ममत्व व वात्सल्य के रस में डूब जाती है। मैं तुझे छठी का दूध याद करा दूंगा, ऐसे चुनौतीपूर्ण शब्द अतीत के मुहावरे बन गए हैं। कारण स्पष्ट है जमाने के साथ मां की ममता का भाव बदल गया है, जिस बच्चे को जन्म से कम से कम 7 – 8 माह तक मां का अमृततुल्य दूध मिलना चाहिए था, उसे वह अपने फिगर को मेंटेन रखने के लिए अपना स्तनपान न करा कर उसे बोतल बंद दूध पिला रही है। यही वजह है कि आज के युवा जीवन साथी मिलने के बाद उस मां से अलग – थलग हो जा रहे हैं, जिसने उसे नौ माह तक गर्भ में पाला था। वैज्ञानिक विश्लेषण से यह बात स्पष्ट हो गई है कि बच्चों को मां का दूध न मिलने से वह डायरिया, निमोनिया एवं कुपोषण जैसी तमाम जानलेवा बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। मां का दूध बच्चों के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक विकास के लिए बहुत आवश्यक है। एक स्वस्थ मां प्रतिवर्ष 346 लीटर दूध पैदा करने की क्षमता रखती है। सर्वेक्षण में पाया गया है की मां का दूध न मिलने से बच्चों की मृत्यु दर बढ़ी है। उनकी हाइट कम एवं शरीर में रोग प्रतिरोधी क्षमता बहुत कम होती है।
माताएं यह भ्रम पालती आ रही हैं कि जन्म के तीन दिन तक बच्चों को अपना दूध नहीं पिलाना चाहिए। वास्तविकता यह है कि जन्म के एक घंटे बाद से ही बच्चे को अपना दूध पिलाना शुरू कर देना चाहिए। तीन दिन तक मां के स्तन से जो पीले रंग का तरल पदार्थ निकलता है, वह बच्चों के लिए संजीवनी का कार्य करता है। मां के दूध से बच्चे को सभी आवश्यक पोषक तत्व प्राप्त होते हैं। यह पाया गया है कि स्तनपान करने वाले बच्चों का बौद्धिक स्तर अन्य की तुलना में अधिक होता है। मां का दूध बच्चों के लिए प्राकृतिक भोजन है। स्तनपान करने वाली महिलाओं का फिगर खराब होने के बजाय उनकी देह और सुडौल हो जाती है। जब कि बच्चों को दूध न पिलाने से उस में मां की ममता का भाव ही क्षीण हो जाता है।

लोहाघाट के उप जिला चिकित्सालय की सीएमएस डॉ सोनाली मंडल मां का दूध नवजात शिशु के लिए प्रकृति का दिया हुआ ऐसा वरदान बताती हैं, जिसके हर घूंट में ईश्वर ने अमृत घोल कर दिया है। बच्चों को दूध से वंचित रखने वाली माताएं न केवल बच्चों को उसके नैसर्गिक अधिकार से वंचित रखती हैं बल्कि इसके ऐवज में अपने लिए वह ब्रेस्ट कैंसर जैसी तमाम बीमारियों को दावत दे देती है।

बच्चों को शिक्षा से अधिक संस्कारों पर जोर देती आ रही पूनम उपाध्याय कहती हैं कि बच्चों को जन्म से दूध न पिलाने वाली माताएं अपने लिए बुढ़ापे में वृद्धाश्रम के दरवाजे उसी वक्त खोल देती हैं। मां के दूध से वंचित बच्चा, मां के ममत्व व वात्सल्य से ही वंचित नहीं होता है बल्कि मां ही उस बच्चे को तमाम बीमारियों के जंजाल में फंसा देती है, जहां से उसे उभारने में ही उसका जीवन चला जाता है। बच्चे को अपना दूध न पिलाने वाली महिला को तो सही मायने में मां कहने का तक अधिकार नहीं है।

By Jeewan Bisht

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