लोहाघाट। पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय द्वारा संचालित लोहाघाट स्थित कृषि विज्ञान केंद्र से यूं ही किसानों का मोह भंग नहीं हुआ है। किसानों द्वारा यहां के दो युवा वैज्ञानिक डॉo रजनी पंत व डॉo भूपेंद्र खड़ायत द्वारा जिस समर्पण भाव से कार्य किया जा रहा था उसे देखते हुए ही उनकी मांग पर जिला प्रशासन द्वारा मशरूम को रोजगार का जरिया बनाने के लिए साढे सैंतीस लाख तथा पॉली हाउस की मरम्मत के लिए चार लाख बयालीस हजार से अधिक धनराशि स्वीकृत की गई थी। प्रशासन का इरादा केंद्र को और धन देने का था लेकिन प्रभारी ने एस्टीमेट ही नहीं बनाए। जब चंपावत को मॉडल जिले की शक्ल देने की योजना बनाई जा रही थी, जिला प्रशासन ने केविके में कई कार्यो का ऐसा प्रदर्शन करना चाहता था जिसे देखकर जिले के किसान प्रेरणा ले सके। इन कार्यों के लिए पर्याप्त धन की व्यवस्था भी की जानी थी। किंतु प्रभारी ने मशरूम उत्पादन के लिए दिए गए धन का उपयोग चार माह बाद तब शुरू किया जब एक बैठक में डीएम ने अभी तक धन का उपयोग न किए जाने के लिए प्रभारी को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि आप को मेरे होते हुए कोई भी धन नहीं दिया जाएगा। जबकि जिला प्रशासन ने इतना धन आवंटित किया जो आज तक केंद्र के इतिहास में सबसे बड़ी पूंजी थी। यह धनराशि तब तो खर्च नहीं की गई जब मशरूम के विषय विशेषज्ञ डॉ० खड़ायत को यहां से हटाया नहीं गया। जबकि किसानों की मांग प्रभारी को हटाने की थी। इसी प्रकार पॉली हाउसों की मरम्मत के लिए आए धन की जानकारी एक महीने बाद उद्यान वैज्ञानिक को दी गई। प्रभारी के रहते कृषि विज्ञान केंद्र की बदलने वाली तस्वीर का सपना चूर-चूर होने का किसानों को भारी मलाल है। यही वजह है कि किसान इस केंद्र को विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा को सौंपने की मांग कर रहे हैं।


जीवन भर मैदानो में रहने के बाद अपने गांव लौटकर मशरूम सहित अन्य उत्पादन करने में लगे पढ़े-लिखे किसान प्रदीप जोशी का कहना है कि उन्होंने कभी प्रभारी को देखा तक नहीं है, जबकि दोनों युवा वैज्ञानिकों के प्रोत्साहन से अन्य लोग अपनी माटी से जुड़ने का इरादा बना रहे हैं। प्रदीप कहते हैं कि ऐसे प्रभारी हमारा क्या भला करेंगे? जो प्रायः गायब रहने के बावजूद मुफ्त का वेतन लेते आ रहे हैं।



किसान यूनियन(टीकेत) के जिला अध्यक्ष मदन पुजारी का कहना है कि प्रभारी के रहते केंद्र में ग्रहण लग गया है। यही वजह है कि केंद्र को ग्रामीणों द्वारा और भूमि देने का इरादा बनाया था लेकिन यहां के बुरे हालात देखकर अब वह भूमि महिला स्पोर्ट्स कॉलेज को दे दी गई है। यहां दो युवा वैज्ञानिकों के बलबूते ही केंद्र का वजूद बना हुआ है।



सुदूर क्षेत्र के रहने वाले प्रगतिशील किसान तुलसी प्रकाश का कहना है कि वह दोनों वैज्ञानिकों को कभी नहीं भूल सकते जिन्होंने उनके यहां आकर उनके लिए समृद्धि के द्वार खोल दिये है। यहां पर ऐसे ही वैज्ञानिकों की जरूरत है। लेकिन मुफ्त में वेतन मिल रहा है तो प्रभारी के सामने यह सवाल आना स्वाभाविक है कि वह काम करे तो क्यों और किसके लिए ?

By Jeewan Bisht

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