सही मायनों में हिंदू सनातन धर्म में नव वर्ष ऐसे समय से मनाया जाता है जब प्रकृति चारों और मुस्कुराकर हमारा स्वागत करने के लिए आतुर रहती है। जंगलों में बुरांश के फूल अपनी रक्तिम छँटा को बिखरने लगते हैं । विभिन्न प्रकार के पुष्प मुस्कुराने के साथ अपनी महक से वातावरण को आनंदित कर देते हैं। प्रकृति हरियाली की चादर चारों ओर बिछाकर हमारे स्वागत के लिए खड़ी होती है । दरसल चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन ब्रह्ना जी ने सृष्टि की रचना की थी। इसी दिन से विक्रमी संवत का शुभारंभ होता है। आज भले ही लोग जनवरी माह के पहले दिन को साल का पहला दिन मान बैठे हैं। लेकिन हमारी सनातन परंपरा में आज भी हर मांगलिक या धार्मिक अनुष्ठान में विक्रमी संवत के अनुसार ही तय किए जाते हैं ।इसके भीतर वैज्ञानिक आधार भी छिपे हुए हैं ।विक्रम संवत का संबंध प्रकृति समेत खगोलीय सिद्धांत और ब्रह्मांड के नक्षत्र व ग्रहों से है। जो राष्ट्र के गौरवशाली अतीत एवं हमारे पूर्वजों की विरासत है।आज ही के दिन सम्राट विक्रमादित्य ने अपना साम्राज्य स्थापित कर विक्रम संवत का शुभारंभ किया था ।श्री राम का राज्याभिषेक आज ही के दिन हुआ था । श्री राम के जन्म से पूर्व 9 दिन खुशियां मनाने के होते हैं ।आज ही के दिन से घरों में शक्ति के रूप में मां दुर्गा को स्थापित किया जाता है । आज ही के दिन समाज को अच्छे मार्ग में ले जाने के लिए आर्य समाज की स्थापना की गई थी । श्री गुरु अंगद देव माहराज का जन्म भी आज ही के दिन हुआ था । युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी आज ही के दिन हुआ था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म भी आज हुआ था।
आजादी के बाद 1952 में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक परिषद द्वारा पंचांग आयोग की स्थापना की गई थी। समिति ने 1955 में सौपी अपनी रिपोर्ट में विक्रमी सक संवत को ही स्वीकार करने की सिफारिश की थी। किंतु तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के विरोध के चलते 22 मार्च 1957 से अंग्रेजी कैलेंडर को ही स्वीकार किया गया । देश मे सनातन के पुनर्जागरण को देखते हुए लोगो को उम्मीद है कि वह दिन शीघ्र आने वाला है जब हिन्दू नववर्ष से राष्ट्रीय कलेंडर घोषित किया जाएगा ।

By Jeewan Bisht

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