चंपावत। शिशिर ऋतु के बीतने के बाद सूर्य देव के मीन राशि में प्रवेश करते ही वसंत ऋतु का आगाज होता है। ऋतुराज वसंत के आते ही शीतकाल समाप्त हो जाता है। पतझड़ वाले वृक्ष नई कपोलों के साथ रंग बिरंगे फूलों से सजकर शीतकाल की पीड़ा को हर लेता है। इस समय चैत्र मास के प्रारंभ होते ही संपूर्ण उत्तराखंड में अनेक पुष्प खिल जाते हैं, जिसमें फ्यूली, बुरांश, कचनार, लाई, किनगोड, हिसर बासिंग और दूसरी स्थानीय रंग बिरंगे फूल प्रमुख हैं। वहीं दूसरी ओर ऊंचे पहाड़ों में जमी बर्फ पिघल कर सर्दी से निजात दिलाती है, प्रकृति के इस परिवर्तन काल में उत्तराखंड के ऊंचे पहाड़ों के जंगल बुरांश के लाल फूलों की चादर ओढ़े दुल्हन की तरह सज जाते हैं।

इस अवसर को पूरे उत्तराखंड में हिंदी महीने के चैत्र मास के प्रथम दिन को फूलदेई के रूप में मनाते हैं। यह उत्तराखंड का प्रचलित लोक पर्व है इस पर्व को कुमाऊं अंचल में “फूलदेई” और गढ़वाल अंचल में “फूल संग्राद” के रूप में मनाया जाता है। सृष्टि के श्रृंगार का यह काल हिंदुओं का नववर्ष नई रितु तथा नए फूलों के आने का संदेश देने वाला यह पर्व मुख्यतः किशोरियों तथा छोटे बच्चों का पर्व है जिससे बाल पर्व भी कहा जाता है। यह पर्व पूरे पर्वतीय अंचल में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है जो यहां की दिनचर्या ऋतु परिवर्तन और वैज्ञानिक पक्ष से जुड़ा है

चैत्र संक्रांति की सुबह-सुबह खेतों से रिगाल की छोटी-छोटी टोकरी में तरह-तरह के रंग-बिरंगे फूल चुनकर लाते हैं उसके बाद बच्चे समूह के साथ गांव के घर घर जाकर घर की देली को फूलों से पूजते हुए घर की खुशहाली, सुख, शांति की कामना के लिए यह प्रचलित गाना गाते हैं। “फूलदेई, छम्मा देई, जतुकै देला, उतुकै सही, देली द्वार, भर भकार, शिव महादेव तेरा द्वार ये देली सै बारंबार नमस्कार”। मान्यता है कि घर के देली में फूल रखने से ईश्वर प्रसन्न होकर व्यक्ति की मनोकामनाएं पूरी करते हैं बदले में घर के लोग बच्चों को नारियल, चावल, तथा शगुन देते हैं। फूलदेई के दिन एक विशेष प्रकार का व्यंजन पकाया जाता है जिससे सयेई या साया कहा जाता है यह से परिपूर्ण होता है साया भीगी चावलों को सिलबट्टे में पीसकर दही का मट्ठा में घोलकर मीठा व्यंजन बनाया जाता है जिससे तेल में पकाया जाता है।


विविधता में एकता भारत की एक विशिष्ट पहचान है फूलदेई यह बाल पर्व उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल फूलदेई के नाम से प्रचलित है तो गढ़वाल मंडल में फूल संक्रांत के रूप में जाना जाता है जिसे जिसमें फूलों की देवी घोघा माता की डोली को विभिन्न प्रकार के फूलों से सजाया जाता है।

By Jeewan Bisht

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