चम्पावत : कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वादशी को भक्ति आस्था की आहुति के साथ तुलसी विवाह संपन्न हो गया। वैदिक मंत्रों के बीच पुरोहितों ने यजमानों के आवास में चातुर्मासीय व्रतों का उद्यापन किया। अब मांगलिक सभी कार्यों के साथ ही विवाह आदि का विधिवत गणेश होगा।
मालुम हो कि अषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को चातुर्मास के प्रारंभ होते ही भगवान नारायण सहित सभी देवगण अपने अपने लोकों से पाताल लोक जाकर निंद्रामग्न हो जाते है और सभी मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाता है। चातुर्मास की समाप्ति पर कात्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे हरिबोधनी कहा जाता है उस दिन सभी देव जागृत होकर अपने अपने लोकों के जाते है। उसके दूसरे दिन यानि द्वादशी को तुलसी विवाह के बाद सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है।
कहा जाता है कि चातुर्मास में तुलसी और शालीग्राम को ही लक्ष्मी नारायण के रुप में पूजन होता है और जब हरि जागृत होते है तो तुलसी विवाह के साथ भक्ति आस्था की आहुति दी जाती है। चातुर्मासीय
व्रत आदि यम नियमों का विधिवत उद्यापन होता है। 13 नवंबर को सुबह से ही सनातनी हिंदू के घरों में शंख ध्वनि और वैदिक मंत्रों के बीच तुलसी का शालीग्राम यानि की भगवान विष्णु से विवाह संपन्न हो रहा है। महिलाएं परंपरागत रंग्याली पिछौड़ी के साथ अनुष्ठान कर रही है और पूरा वातावरण सनातनी परंपरा का ध्वज वाहक बना है।

By Jeewan Bisht

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