
लोहाघाट। चंपावत को मॉडल जिला बनाने के लिए वर्ष 2023-24 की जिला योजना को ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान कर रोजगार परक कार्यक्रमों के लिए समर्पित किया जाना चाहिए। जिला योजना में प्रस्तावित कार्यों को स्वीकृत करने से पूर्व उन कार्यों की जनहित में कितनी उपयोगिता है इसके लिए बकायदा जिला स्तर पर अधिकारियों का एक निरीक्षण दल डिडियो एवं एपीडि के नेतृत्व में गठित किया जाना चाहिए। जिला योजना के बारे में कहा जाता है कि कुछ विभागों के लिए तो इसमें लाटरी खुलती आ रही है। जब मॉडल जिले की बात हो और जिले का नेतृत्व सीएम कर रहे हो तो जिला योजना का घिसा पिटा स्वरूप बदला जाना चाहिए। इसके लिए उद्यान कृषि बेमौसमी सब्जी, फूलों की खेती, मौनपालन, दुधारू पशुपालन, जड़ी बूटी की खेती, जैविक खेती, वर्टिकल फार्मिंग, इंटीग्रेटेड फार्मिंग जैसे ग्रामीण रोजगार परक कार्यक्रमों के लिए समर्पित की जानी चाहिए। उत्पादक गांव को सड़क से जोड़ने, वहां सिंचाई की सुविधा दिए जाने, किसानों को उन्नत बीज, पाली हाउस, पाली टनल, मल्चिंग आदि खेती को बढ़ावा देने, जिले में आलू बीज का फार्म विकसित कर फलदार पौधों की नर्सरी जिले में ही बनाई जानी चाहिए जिसके लिए बाहरी जिलों पर निर्भरता बनी हुई है।

मौन पालन को कुटीर उद्योग का रूप देने के लिए जिला स्तर पर पर्याप्त उपलब्ध तुन की लकड़ी का उपयोग कर स्थानीय स्तर पर मौन के बक्से बनाए जाने चाहिए जिससे बक्से न केवल टिकाऊ, सस्ते एवं उनकी गुणवत्ता भी अच्छी होगी। बाहर से आने वाले बक्सों में कमीशन खोरी तो है ही गुणवत्ता भी निम्न स्तर की है। कृत्रिम गर्भाधान के लिए नए केंद्र खोले जाएं। दूध का उत्पादन बढ़ाने के लिए दुग्ध उत्पादकों को रियायती दरों पर संतुलित पशु आहार इसी प्रकार मछलियों का आहार भी दिया जाना चाहिए। जिले में 80% सब्सिडी पर भूसे की व्यवस्था की जानी चाहिए। चारे की समस्या के लिए बरसीम, जई, चरी आदि की व्यवस्था गांव-गांव में उपलब्ध की जाए। डेयरी विभाग द्वारा अनुदान पर दी जाने वाली उन्नत नस्ल की गाय पहाड़ी जिलों से ही उपलब्ध कराई जाए। आज तक बहारी जिलों से मंगाई गई अधिकांश गाय मर चुकी है। गांव में गौशालाओं की स्थिति ठीक नहीं है। दुधारू पशुओं के लिए मिनरल मिक्चर, कांव बेड आदि सुविधाएं देकर उनका प्रबंधन ठीक किया जाए तो जिले से ही एक लाख लीटर दूध पैदा किया जा सकता है। बकरी की स्थानीय प्रजाति के स्थान पर जमुनापारी एवं सिरोही आदि प्रजातियों की बकरियों को बढ़ावा दिया जाए। हर घर में मुर्गी पालन के लिए लोगों को प्रेरित किया जाए। यदि जिला योजना में ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए ईमानदार प्रयास किए जाएं तो इसके लिए कोई अतिरिक्त बजट की आवश्यकता नहीं होगी।