लोहाघाट| कोरोना महामारी की तर्ज पर नया ह्यूमन मैटा न्यूरो वायरस एचआईएमपी चुपके चुपके चीन की सीमा लाग कर हमारे घर में दस्तक देने आ रहा है| चार साल पहले कोरोना भले ही महामारी के रूप में सामने आया और माननीय प्रधानमंत्री श्री मोदी के नेतृत्व में इसका मजबूती के साथ मुकाबला किया गया था| इस दौरान यह पाया गया की प्रकृति से आत्मसात कर अपना खान-पान, जीवन शैली, योग- प्रणाम करने वालों को महसूस नहीं हुआ कि कोरोना कब आया और चले गया| पशुओं में लंपी वायरस का प्रकोप हुआ| किंतु उसने हमारे पूर्वजों की विरासत बद्री गाय को छुआ तक नहीं जबकि 900 क्रॉस ब्रीड अकेले चंपावत जिले में ही मर गई।
प्रकृति से नाता टूटने के साथ ही बीमारियों को मिलने लगी दावत- डॉ आनंद सिंह
लोहाघाट| जिला आयुर्वेदिक एवं यूनानी चिकित्सा अधिकारी तथा आयुर्वेद के जानकार डॉ-आनंद सिंह का कहना है कि जब से हमने प्रकृति से अपना नाता तोडा तब से हम घर के आसपास प्रकृति द्वारा दी गई वन औषधीयों को छोड़कर बाजारों से दवा लाने लगे| तभी से हमने अपने शरीर को रोगों का घर बना दिया| ईश्वर द्वारा प्रदत्त गाय जो शताब्दियों से मोबाइल डिस्पेंसरी की तरह हमारे जीवन रक्षा करती आ रही है, उसका महत्व ही नहीं समझा| डॉ सिंह का कहना है कि कोरोना को रोकने वाली तुलसी, सौठ,काली मिर्च, गिलोय, हल्दी, सौफ जो हमारे रसोई के एक अंग हैं, इनका काड़ा पीने से शरीर की जो रोग प्रतिरोधी क्षमता पैदा होती है, उसमें तो कोई भी रोग झांकने के बाद ही आगे बढ़ जाता है| लोहाघाट| कोरोना महामारी के दौरान घर-घर होम्योपैथिक की दवा आर्सेनिक – एल्बम को पहुंचा कर लोगों को बचाने वाले जिला होम्योपैथिक चिकित्सा अधिकारी डॉ- अशोक नगरकोटी का मानना है की जानकारी के अभाव में हम एक दूसरे का हाथ मिलाकर अभिवादन तो करते हैं लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि एक व्यक्ति से सीधे संपर्क में आने से ही रोगों का आदान-प्रदान शुरू हो गया| जबकि आयुर्वेद का कहना है कि हाथ मिलाना भले ही पाश्चात्य देशों का फैशन रहा हो किंतु यह भारत की न तो संकृति रही है, और न हीं प्रकृति| इसीलिए हाथ मिलाने को कैरियर आफ डिजीज कहा जाता है| यदि इससे बचें तो हम स्वंय क़ो काफी रोगों से सुरक्षित रह सकते हैं|मास्क लगाने से रोगो से इतना बचाव होता हैँ की इसे लगाने वाला ब्यक्ति ही अनुभव कर सकता हैँ|