लोहाघाट। लंपी वायरस से चंपावत जिले में पशुधन को भारी नुकसान पहुंच रहा है। गंभीर हालातों को देखते हुए भारत सरकार के पशुधन मंत्रालय की एक टीम बुधवार को चंपावत आ रही है जो यहां ताजा हालातों की समीक्षा करेगी। सीवीओ डॉ पीएस भंडारी के अनुसार अभी तक 93 पशु के मारे जाने की सूचना मिली है यह आंकड़ा अप्रैल माह से जुटाया गया है। जबकि वास्तविकता यह है कि मार्च के प्रथम सप्ताह से ही पशु इस वायरस की चपेट में आने शुरू हो गए थे। सूत्रों के अनुसार पशुओं की मौत का आंकड़ा कब का सैकड़ा पार कर चुका है। दुधपोखरा क्षेत्र में हालत काफी नाजुक बने हुए हैं। सबसे अधिक दूध का उत्पादन करने वाले चौड़ी गांव में सात गाय मर चुकी है।यहां लोग दहशत के बीच जी रहे हैं। ग्रामीण अर्थव्यवस्था के मुख्य आधार दुधारू पशुओं की इतनी बड़ी संख्या में मौत होने पर इसे रोकने के लिए राज्य स्तर पर कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।दूध का उत्पादन लगातार घटता जा रहा है अभी तक लगभग 1800 से 2000 लीटर दूध के उत्पादन में कमी आई है।
सबसे हैरतंगेज बात यह है कि दूग्ध समितियों से मिल रही जानकारी के अनुसार 240 से अधिक पशु वायरस की चपेट में आ चुके हैं। जबकि पशुपालन विभाग का आंकड़ा अभी दहाई के अंक मे घूम रहा है। इससे पहले यह आंकड़ा इकाई मे ही घूम रहा था। जब जिलाधिकारी द्वारा इस मामले में हस्तक्षेप किया गया तो वास्तविक तस्वीर सामने आने लगी।इसके बावजूद भी अभी पशुपालन विभाग व दुग्ध समितियों से मिल रही रिपोर्टों में कोई तालमेल नहीं है। जिले के किसानों के सामने जो विकट स्थिति पैदा हुई है उसे देखते हुए जनप्रतिनिधियों की स्थिति को देखकर “रोम जल रहा,नीरो बंशी बजा रहा,
वाली कहावत चरितार्थ हो रही है।हालांकि मुख्यमंत्री चंपावत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। लेकिन इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है कि सीएम तक पशुपालकों की चीख नहीं पहुंच रही है। जिले में पशुओं को जो नुकसान पहुंच रहा है, लंपी वायरस को महामारी मानते हुए पीड़ित किसानों को मुआवजा देने की मांग नको नजरअंदाज किया जा रहा है।दूध का उत्पादन गांव की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। जिस घर से गाय नाता तोड़कर चली गई है उस घर से एक कमाऊ सदस्य सदा के लिए चला गया है। यदि वायरस पर प्रभावी नियंत्रण नहीं किया गया तो तब रोने से क्या लाभ होगा जब लोगों के मुंह से निवाला ही छिन जाएगा?लोगों का कहना है कि वायरस से जितनी मौतें हो रही है यदि इसे रोकने के लिए युद्ध स्तर पर कोई प्रयास नहीं किए गए थे यहां पशुपालन विभाग का वजूद ही समाप्त हो जाएगा।

By Jeewan Bisht

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