चंपावत। जिलाधिकारी नवनीत पांडे की पहल पर जन औषधि केंद्रों को सहकारी समितियों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित कर लोगों को स्थानीय स्तर पर सस्ती दवाईयां उपलब्ध कराने के साथ स्थानीय रोजगार को बढ़ावा देने के अलावा पलायन रोकने का भी ऐसा मॉडल तैयार किया है। जिसमे 65 फिसदी लाभांश पर फार्मासिस्ट काम कर रहे हैं शेष 35 फिसदी लाभांश समिति का होगा। इस मॉडल को पूरे राज्य में अब लागू किया जा रहा है। वर्तमान में रौलमैल, बाराकोट, चौमेल एवं चंपावत में समितियां काम करने लगी है। जिसमें मिली भारी सफलता को देखते हुए धूरा समिति भी यह कार्य करेगी। जन औषधि केन्द्रों की दवाएं बाजारों से आधे से भी कम किमत में मिलती है। प्रत्येक जन औषधी केन्द्र एवं आधार केन्द्र हेतु प्रति समिति05 लाख कुल 10 समितियों को 40 लाख रुपए जिला योजना से दिया गए हैं। सहायक निबंधक सुभाष गहतोड़ी के अनुसार 23 समितियों में जन सुविधा केंद्र खोले जा चुके हैं तथा 10 समितियों का आधार केंद्र खोले जा रहे हैं। डीसीडीसी के अध्यक्ष होने के कारण जिलाधिकारी ने समितियों को आत्मनिर्भर बनाने पर जोर देने के बाद 75 लोगों को प्रत्यक्ष तथा 6000 लोगों को विभिन्न कृषि एवं कृषियेत्तर कार्य हेतु रोजगार मिल चुका है। समितियां द्वारा महिला समूह के माध्यम से अदरक का व्यापक उत्पादन शुरू कर अब जिले में अदरक के बीज की आवश्यकता को जिले स्तर से पूरा करने की पहल शुरू की गई है।
सहायक निबंधक के अनुसार चंपावत जिले में अभी तक 27 सौ कुंटल के सापेक्ष 811 कुंटल मडुवे की खरीद की जा चुकी है। यहां के मंडुवे की विशेषता यह है कि यह पूर्ण रूप से जैविक, पौष्टिकता से भरपूर स्वादिष्ट एवं आकर्षक रंग का होने के कारण इसकी मांग इतनी बढ़ गई है कि लोग गांव से ही अधिक मूल्य में खरीद करने लगे हैं। महिला समूह द्वारा भी मंडुवे के तमाम उत्पाद बनाने के कारण इसकी खपत काफी बढ़ गई है। सहायक निबंधक का कहना है कि सहकारिता के माध्यम से इंटीग्रेटेड फार्मिंग को बढ़ावा देने के लिए पशुपालन, उद्यान, मत्स्य पालन, कृषि, भेषज आदि विभागों से समन्वय स्थापित कर गांवों के समग्र विकास का मॉडल तैयार किया जा रहा है। सहकारिता विभाग युवाओं को रोजगार से जोड़ने के लिए बगैर ब्याज का कर्ज दे रहा है। सरकारी नौकरी में सीमित अवसर होने के कारण स्वरोजगार ही एकमात्र ऐसा माध्यम है जिसमें सम्मान से जीवन यापन करने के लिए पर्याप्त अवसर है।