देवीधुरा। सेतु आयोग उत्तराखंड को देश का मॉडल राज्य बनाने के लिए राज्य में उपलब्ध संसाधनों को सशक्त कर उनका दोहन करने के साथ राष्ट्रीय स्तर की तकनीकी संस्थानों से सहयोग व संबंध स्थापित कर आयोग की एक ऐसी टीम बना रहा है जो कृषि, उद्यान, उद्योग, शिक्षा, चिकित्सा आदि विभिन्न क्षेत्रों में ऐसा कार्य करेगा जिससे विकास एवं रोजगार का क्रम एक साथ चलेगा। राज्य में स्थित पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय जैसे संस्थाओं को और सशक्त कर जिले के कृषि विज्ञान केंद्रों को उपयोगी बनाया जाएगा। यह बात अपने निजी दौरे पर अपने गृह क्षेत्र बाराही धाम में सेतु आयोग के उपाध्यक्ष राजशेखर जोशी ने कही। राजशेखर जोशी का कहना है कि इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है कि जिस उत्तराखंड में सुकून से जीवन बिताने के लिए सालों से लोग यहां आने के लिए लालायित रहते हैं, दूसरी ओर यहां के लोग अपने पूर्वजों की विरासत से नाता तोड़कर मैदानी क्षेत्रों में भीड़ का हिस्सा बन रहे हैं। हमारी पूरी कोशिश होगी कि उन्हें अपनी माटी से जोड़ने के लिए सभी जरूरी साधन व संसाधन उपलब्ध कराएंगे । पहाड़ में हर घर के गोठ में गाय एवं छत में मौन का बक्सा होना रिद्धि-सिद्धि का प्रतीक माना जाता था। पूर्वजों की इस सोच को पुनर्जीवित कर उत्तराखंड को दूध और मौन पालन के क्षेत्र में तकनीकी रूप से समृद्ध एवं रोजगार का सशक्त माध्यम बनाने की पहल की जा रही है। हर कार्य को तकनीकी एवं वैज्ञानिक तरीके से संचालित करने के लिए आयोग विशेषज्ञों की टीम गठित कर रहा है। राजशेखर जोशी का स्पष्ट मानना है कि आयोग आंकड़ों की बाजीगरी में कम, जमीन पर हुए विकास से कितने लोगों को रोजगार मिल रहा है, इस सिद्धांत पर काम कर रहा है।
राजशेखर जोशी ने बताया कि वे प्रारंभिक चरण में उत्तराखंड के विकास एवं सामाजिक विकास का प्रारूप तैयार करने में लगे हुए हैं। जून के दूसरे पखवाड़े से वह जिलों का दौरा करेंगे। देश के नामी औद्योगिक घरानों से वह अपने निकट संबंधों का लाभ उठाते हुए उत्तराखंड के सामाजिक विकास की नई पहल की भी शुरुआत करेंगे। जंगलों को आग से बचाने के लिए वैज्ञानिक आधार पर कार्य किया जा रहा है। इससे पर्यावरण को कितना नुकसान हो रहा होगा, जिसकी भरपाई करने में पचासों साल लग जाते हैं। यह भी कितनी विडंबना है कि एक ओर हम पर्यटन व तीर्थाटन के नए आयाम जोड़ते जा रहे हैं। जब पर्यटक उत्तराखंड में आते हैं तो हम उनका धूल, धुएं एवं तपिश से स्वागत करते हैं। उनका कहना है की गंगा एवं यमुना का उद्गम उत्तराखंड में जिस तेजी के साथ जल स्रोत सिकुड़ते जा रहे हैं, यह हम सबके लिए एक गंभीर समस्या एवं चुनौती बनी हुई है। इस दिशा में आयोग गंभीरता से चिंतन कर रहा है। उनका मानना है कि बिना पानी के हमारे जीवन का अस्तित्व ही नहीं है। इस दिशा में भी कार्य चल रहा है। आयोग के कार्यों के त्वरित संचालन के लिए आयोग हर जिले में नोडल अधिकारी नियुक्त करेगा।