लोहाघाट।कर्मकांडाचार्य एवं कुल पुरोहित सामाजिक विकृतियों के प्रति जन जागरण करेंगे। उनका मानना है कि पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण किए जाने से सनातन समाज को तमाम विकृतियो ने उन्हें घेर लिया है। ऐसे सामाजिक परिवेश में सनातन धर्म की मान्यताओं व परंपराओं को गहरा आघात लग रहा है। कुल पुरोहितों के बीच आपसी संवाद कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए पुराणों के मर्मज्ञ एवं प्रख्यात कथा वाचक आचार्यश्री प्रकाश कृष्ण शास्त्री का कहना है कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जहां नारी को श्रद्धा व सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है, वह घर सदा स्वर्ग जैसा बना रहता है। हम वर्ष में दो बार कन्या पूजन कर उन को देवी मानते हुए उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस व्यवस्था को बनाने का अर्थ होता है जिस कन्या को हमने देवी रूप में पूजा है बड़ी होने पर उससे हमारा रिश्ता व व्यवहार मां के समान बना रहता है। आज पाश्चात्य संस्कृति ने नर को नर पिचाश बना दिया है। मां की कोख भी बेटी के लिए सुरक्षित नहीं रह गई है। समाज में जो कुछ घटित हो रहा है वह हमारी न तो संस्कृति है और न ही प्रवृत्ति। आचार्यश्री का कहना है कि आज शिक्षा से अधिक समाज को संस्कारों की जरूरत है जो माता पिता अपने बच्चों के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर देते हैं, बेटे के विवाह के बाद उन्हीं माता-पिता से घर में दुश्मनों जैसा व्यवहार होने लगता है। कहां गई वह हमारी सोच जिसमें नवविवाहिता के घर में पदार्पण को लक्ष्मी व श्री का आगमन माना जाता था? जो माता 5 -6 बच्चों को जन्म देने के बाद स्वय भूखी-प्यासी रहकर उन्हें पालकर बड़ा बनाती है, उसी मां को वृद्धावस्था में पालना बच्चों के लिए भारी पड़ने लग रहा है। आचार्यश्री के अनुसार भले ही हम भौतिक प्रगति करते जा रहे हैं लेकिन अपने गौरवशाली अतीत एवं संस्कारों से नाता तोड़कर ऐसे भविष्य में कदम रख रहे हैं जहां अंधकार के सिवा कुछ नहीं है। कर्मकांड आचार्य पारिवारिक संस्कारों को पुनर्जीवित करने के लिए हर कार्यक्रम में जन जागरण करेंगे,उनका कहना था कि सनातन धर्म की रक्षा के लिए संस्कारों का होना समय की एक ज्वलंत आवश्यकता बन गई है।