चंपावत। मॉडल जिला चंपावत में बागवानी विकास की अपार संभावनाएं हैं। कई मायनों में तो यहां की भौगोलिक परिस्थितियां हिमाचल से बेहतर है। यहां की मिट्टी की उर्वरा शक्ति अच्छी होने के साथ यह मिट्टी अभी जहरीले रसायनों से बची हुई है। यह कहना है हिमाचल के कुल्लू जिले के मोहाल के प्रगतिशील किसान राकेश अधिकारी का। राकेश अधिकारी ने फोन से संपर्क कर यहां कठनौली गांव के भीम सिंह महर को जिले का एप्पल मैन बनाया है। पिछले एक सप्ताह से यहां के किसानों से प्रत्यक्ष रूप में रूबरू हो रहे हैं। राकेश अधिकारी का कहना है की जानकारी के अभाव के कारण किसान यहां की अनुकूल भौगोलिक परिस्थितियों का दोहन नहीं कर पा रहे हैं। उनका कहना है कि सिंचाई सुविधा का कोई साधन न होना यहां के किसानों की गरीबी का मुख्य कारण है। बगैर पानी के तो खेती किसानी संभव ही नहीं। जंगली जानवरों से बचाव के कोई इंतजाम नहीं किए गए हैं कहीं पर भी गुणवत्ता युक्त नर्सरी नहीं है। पौधों में कब स्प्रे एवं जैविक कीटनाशक दवाओं के छिड़काव की जानकारी भी नहीं है। पेड़ों की ग्राफ्टिंग, कटिंग, ड्रेसिंग आदि का भी ज्ञान नहीं है। मार्केट की व्यवस्था न होना फल व सब्जियों की ग्रेडिंग की जानकारी न होने से किसानों के उत्पादन को मनमाने मुल्य में बिचौलिए खरीद रहे हैं।
राकेश अधिकारी का कहना है कि भले ही मौसम चक्र में बदलाव के कारण डेलीसस प्रजाति का सेब यहां नहीं हो सकता लेकिन सेब की अन्य प्रजातियों का यहां बखूबी उत्पादन किया जा सकता है। हिमाचल में जंगली जानवरों से बचने के लिए तार बाड़, सोलर फैन्सिग की व्यवस्था की जाती है। फलों को पंछियों एवं ओलों की मार से बचाने के लिए एन्टी हेल नैट लगाई जाती है। सिंचाई के लिए बोरिंग कर पंप के जरिए खेतों में पानी पहुंचा जा सकता है। राकेश अधिकारी का मानना है कि यहां के फल उत्पादकों को ट्रेनिंग एवं प्रौनिग की सख्त आवश्यकता है । यहां 300 से 500 फीट में किवी की सभी प्रजातियां पैदा की जा सकती है। आडू, पुलम की मिक्स नेकट्रीन आडू प्रजाति विकसित की गई है। फलक, खुमानी एवं शकरपारा बहुतायत रूप में पैदा किया जा सकता है। सेब की ऐसी अलग-अलग प्रजातियां हैं जिन्हें 300 से 500, 500 से 700 तथा 700 से 900 फिट की ऊंचाई में पैदा किया जा सकता है। इसी प्रकार यहां अखरोट की नई चांदला अमेरिकन प्रजाति के उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं। राकेश अधिकारी का मानना है कि यदि सही मायनों में उत्पादकों को प्रोत्साहित किया जाए तो प्रशिक्षण के लिए हिमाचल जाने वाले उत्तराखंड के अन्य जिलों के किसान चंपावत आ कर प्रशिक्षण लेंगे। कठनौली में हाड़तोड़ मेहनत से लगाए गए भीम सिंह महर के चार सौ सेब के पेड़ पानी के बिना सुख गए हैं। जबकि ढाई हजार पौधों को इन्होंने जैसे तैसे सुरक्षित रखा हुआ है। यही स्थिति अन्य उत्पादकों की भी है।