लोहाघाट। घोर अभावों के बीच अपना शुरुआती जीवन बिताते हुए दूसरों की खुशी में अपनी खुशी देखने की मनोवृत्ति वाले शिक्षाविद् एवं पूर्व जीआईसी बापरू के प्रधानाचार्य त्रिलोक राम आर्य का कार्य शिक्षा जगत में ही बेमिसाल नहीं रहा, बल्कि संगीत के पारंगत इनके द्वारा फोर्ती गांव में रामलीला का आज से लगभग 3 दशक पूर्व शुभारंभ कर लोगों को एकता के सूत्र में बांधने का प्रयास किया। लधिया घाटी के सुदूर मंगललेख गांव के आर्य ने अपने गांव में सबसे पहले रामलीला शुरू की। इसकी प्रेरणा उन्हें अपने पिताश्री के गुरु पंडित रूद्र दत्त पंत से पैदा हुई, जो एक शिक्षक थे तथा गंगोलीहाट से लधिया घाटी क्षेत्र में आकर रामलीला का मंचन किया करते थे। गीत,संगीत,तबला एवं हारमोनियम में पारंगत आर्य ने इसका कहीं कोई प्रशिक्षण नहीं लिया। इनकी सीखने की ललक ने ही इतना पारंगत बना दिया है कि यह रामलीला से संबंधित सभी सुर , लय, ताल में अपनी प्रतिभा का शानदार प्रदर्शन करते आ रहे हैं। आर्य का मानना है कि रामलीला जैसे ऐसे आयोजन हैं, जो लोगों को धर्म कर्म के साथ जोड़ने के अलावा श्री राम के समान पितृभक्त, लक्ष्मण के समान भ्रातृप्रेम, सीता के समान जीवन संगिनी, हनुमान के समान सुख दुख का साथी बनने की हमें प्रेरणा तो देते ही है इससे ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों का स्वस्थ मनोरंजन भी होता है।