लोहाघाट। राज्य समेकित सहकारी विकास परियोजना एनसीडीसी के तहत उत्तराखंड में दूध के उत्पादन को बढ़ावा देने के जो प्रयास किए जा रहे हैं उसका क्रियान्वयन सही ना होने के कारण लोगों को योजना का लाभ मिलने के बजाय सरकारी धन की खुलेआम बर्बादी होने के साथ पशुपालक कर्ज में डूबते जा रहे हैं। योजना के तहत उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में राज्य के बाहर से किसी भी प्रदेश से गाय लाना अनिवार्य किया गया है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि यूपी, पंजाब, हरियाणा आदि की आबोहवा में रहने वाली गायों को यहां न तो वह वातावरण मिलता है न चारा और नहीं वैसा गोठ। फल स्वरूप वहां से यहां आने वाली गाय या तो मर जा रही हैं या जिंदा है तो उन्होंने अपना दूध बहुत कम कर दिया है। इस योजना के तहत चंपावत जिले में ही सैकड़ों गाय आ चुकी हैं जानकारी के अनुसार पांच फ़ीसदी गायें भी यहां कामयाब नहीं हो पा रही हैं।
दूध का कारोबार करने वाले शुपालकों के लिए यह योजना किसी वरदान से कम नहीं है। जिसमें सामान्य जाति के पुरुष को 50 फ़ीसदी एवं महिला व एससी वर्ग के लोगों को 75 फ़ीसदी अनुदान सरकार दे रही है। यदि पर्वतीय जिलों में अंतर जिला गायों के साथ कलोड़ खरीदने की भी सुविधा दी जाए तो यह योजना बेहद फलीभूत हो सकती है। राज्य के मैदानी जिलों के लोग यूपी से गाय ला सकते हैं। चंपावत जैसे जिले में सैकड़ों पशुपालकों के घरों में कलोड़ हैं जिनकी बिक्री न होने से लोग इन्हें ओंने -पौने दामों में दूसरों को बेचते हैं या उन्हें छोड़ देते हैं । कलोड़ों की बिक्री से दुधारू पशुओं को पालने के प्रति और लोगों की रूचि बढ़ेगी तथा दूध का उत्पादन भी बढ़ेगा। राज्य सरकार को इस योजना पर पुनर्विचार करना चाहिए। जब यह योजना ही अव्यावहारिक है तो इसे क्यों और किन परिस्थितियों में जबरन चलाया जा रहा है? उत्तराखंड के सभी पर्वतीय जिलों की समान समस्या है। किसान यूनियन का कहना है कि यदि इस योजना को पहाड़ों में अंतर जिला खरीदने की सुविधा दी जाए तो निश्चित तौर पर किसानों को इसका पूरा लाभ मिल पाएगा।