चंपावत। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की परिकल्पना के अनुरूप चंपावत को हिमालयी राज्यों का मॉडल जिला बनाने के प्रयासों में जहां लगातार तेजी आ रही है वहीं जिले की प्रतिष्ठित शिक्षण संस्था डीएवी स्कूल के संस्थापक अध्यक्ष एवं शिक्षाविद् बीसी मुरारी मॉडल जिले को अंतर्राष्ट्रीय टूरिज्म स्पॉट बनाने के प्रयास में लगे हुए हैं। पिछले एक दशक से विश्व प्रसिद्ध शिकारी जिम कॉर्बेट की कर्म भूमि चंपावत में विभिन्न स्थलों में खोज कर उन्होंने कई ऐसे तथ्यों को उजागर किया है जो आम लोगों की दृष्टि में ओझल बने हुए थे। मुरारी की अवधारणा पर वन विभाग द्वारा जिम कॉर्बेट ट्रेन तैयार की जा रही है। उनका कहना है कि जिम कॉर्बेट 1907 में देवीधुरा, पाटी, लोहाघाट होते हुए गौंडी के बाग बगोंडी स्थान में गए जहां मैन हिटर ने 436 लोगों का खून चूस लिया था जिसमें 200 नेपाली लोग शामिल थे। मुरारी का कहना है कि कॉर्बेट ने जहां 1907 में यहां नरभक्षी का पहला शिकार किया था। तथा अंतिम शिकार 1938 में टाक स्थान में किया था। कॉर्बेट ने इस अवधि में तल्लादेश, चूका में तीन नरभक्षीयों को मार कर लोगों को राहत दी थी।
अपने 31 साल के चंपावत प्रवास के दौरान जिम कॉर्बेट के अनुसार चूका से तल्लादेश तक 30 किमी का क्षेत्र ट्रैकिंग के लिए इससे अच्छा कोई दूसरा स्थान नहीं हो सकता। वन्यजीवों का यहां संरक्षण किया जाना चाहिए उनका यहां अलग ही संसार बसा हुआ है। कॉर्बेट की दृष्टि में यहां के लोगों का सरल व आत्मीय व्यवहार रहा है। जिसकी चर्चा उन्होंने अपनी पुस्तकों में भी किया हुआ है। “टेंपल टाइगर एवं मैंन ईटर ऑफ कुमाऊं” में जिम कॉर्बेट ने यहां की भौगोलिक स्थिति के अद्भुत नजारे का उल्लेख करते हुए कहा है कि ऐसा नजारा दुनिया में और कहीं देखने को नहीं मिलता है। मुरारी का कहना है कि कॉर्बेट की यह पुस्तकें दुनिया में सबसे अधिक बिकने वाली पुस्तकों में शामिल हैं। दुनिया का हर सातवां व्यक्ति जिम कॉर्बेट को नाम से जानता है। आज भी विदेशों से लोग यहां आकर वह चंपावत में उसे स्थान में मोमबत्ती जलाकर कार्बेट को श्रद्धांजलि देते हैं जहां उन्होंने नरभक्षी का खात्मा कर आम लोगों को राहत दी थी।
जब कॉर्बेट को मां बाराही की शक्ति का हुआ एहसास।
चंपावत। जिम कॉर्बेट को बाराहीधाम में मां बाराही की परिक्रमा करने रोज यहां आने वाले बाघ को मारने का कई बार प्रयास किया था लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। उसने अपनी हार मान ली थी और देवी शक्ति के चमत्कार को नमस्कार करके वह चला गया। तभी से उसकी यहां के देवी देवताओं पर अगाध श्रद्धा और विश्वास होने लगा था।