लोहाघाट। एक माह तक चले रमजान के पाक महीने के बाद ईद – उल – फितर ढ़ेर खुशियां लेकर आती है। रमजान के रोजे को रखना भी यही बताता है कि रब के सिवा दूसरा ऐसा कोई नहीं जिससे हमें बख्शीश मिल सके, इसलिए अल्लाह ने बार-बार इस बात को कहा है कि रोजे मेरे लिए है, और मैं ही इसका शबाब दूंगा। युवा मौलाना जिया उल मुस्तफा का कहना है कि मनुष्य जो भी अच्छे बुरे कार्य कर्ता है, उसका हिसाब किताब सब ऊपर वाला रखता है। रमजान का पाक महीना हर वर्ष इसलिए आता है कि अल्लाह के बंदे इस दौरान रोजे रखकर वह अपने को मन, वचन और कर्म से इतना पाक बने की वह उसके बताए रास्ते में ही चल सकें। रमजान के बाद ईद- उल – फितर इतनी खुशियां लेकर आती है कि रोजेदार समझता है कि अल्लाह ने उस पर शबाब बरसाया है। मुस्तफा कहते हैं कि जब हर घर में ईद की खुशी होगी तभी ईद होगी इसलिए ईद की नमाज के पहले सदका ए ईद- उल- फितर अदा करने को कहा गया है। जिसमें अल्लाह का साफ कहना है कि जो दौलत तुम्हें मैंने बक्शी है, उसमें से तुमने उसका हक अदा कर दिया या नहीं ?