चंपावत। चंपावत को मॉडल जिला बनाने के लिए हालांकि उत्तराखंड स्टेट काउंसलिंग फॉर साइंस एंड टेक्नोलॉजी यू-कास्ट को नोडल एजेंसी बनाया गया है, लेकिन किसानों एवं यूकोस्ट के वैज्ञानिकों के बीच आपसी तालमेल एवं संवाद न होने के कारण किसान वैज्ञानिकों की भाषा नहीं समझ पा रहे हैं। हालांकि यहां के किसान काफी वैज्ञानिक सोच रखते हैं। यू-कास्ट के वैज्ञानिक यदि हाई-फाई बैठकें करने के बजाय खेतों में जाकर किसानों को किसानी की भाषा में संवाद करें तो उनकी समझ काफी बढ़ सकती है। यहां के किसानों को ऐसी वैज्ञानिक तकनीक एवं सोच की आवश्यकता है, जो उनके पारंपरिक तरीके से की जाने वाली खेती का कैसे उत्पादन बढ़ाकर उन्हें उनके उत्पादन का सही मूल्य दिला सके। गत वर्ष डेढ़ सौ रुपए किलोग्राम की दर से अदरक का बीज खरीद कर और हाड़तोड़ मेहनत करने के बाद जब किसानों को ₹10 प्रति किलो की दर से उसे बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा तो इसका परिणाम यह निकला की अदरक का प्रक्षेत्र इस बार बहुत कम हो गया है। यहां हल्दी का व्यापक उत्पादन इसलिए हो सकता है कि इसे जंगली जानवर या बंदर नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। पूरी तरह जैविक यहां की हल्दी में औषधि गुणों की भरमार होती है। हल्दी का कोई समर्थन मूल्य न होने से किसान बिचौलियों का शिकार बनते जा रहे हैं। लोहाघाट, चंपावत, पाटी आदि स्थानों में तो कोई मंडी तक न होने का पूरा लाभ भी दलाल उठा रहे हैं। किसानों की आय बढ़ाने एवं खेती के प्रति उनके लगाव को बनाए रखने के लिए हर उत्पाद का समर्थन मूल्य निर्धारण करना आवश्यक है। गत वर्ष 110 मीट्रिक टन माल्टा का उत्पादन तो हुआ लेकिन किसान बेचारों को औने-पौने दाम में उसे बेचना पड़ा। किसानों का कहना है कि हाल में जिला मुख्यालय में हुई वैज्ञानिकों की कार्यशाला में किसानों के नाम पर काफी धनराशि खर्च की गई, लेकिन उनकी जो फजीहत हुई उसे देखते हुए वैज्ञानिकों को यदि सही मायने में उन्हें लाभ देना है तो अपनी कार्यशैली व संस्कृति बदलनी होगी।
जिले में उद्यान विभाग द्वारा उद्यान एवं बेमौसमी सब्जियों आदि के क्षेत्र में जो कार्य किया जा रहे हैं, उसके परिणाम अब धीरे-धीरे दिखाई देने लगे हैं। अब ऐसे किसानों की लंबी सूची बनती जा रही है जो कुंतलों के हिसाब से शिमला मिर्च,गोभी,बैगन,फ्रेंच बीन आदि का उत्पादन करने लगे हैं। इसकी वजह उद्यान विभाग का किसानों से लगातार सीधा संवाद कर उन्हें समय से बीजों की उपलब्धता कराना तथा उन्हें अपनी तकलीफ से अवगत कराना है। सब्जियों में मल्चिंग पद्धति अपनाने से सब्जियों का उत्पादन बढ़ने के साथ किसान की मेहनत भी कम हुई है। अब विभाग की के उत्पादन पर भी अपना ध्यान केंद्रित किए हुए है। इसका भी समर्थन मूल्य तय किया जाना चाहिए। किसानों को सिंचाई सुविधा एवं अन्य उत्पादों को बाजार तक लाने के लिए सड़क दोनों ही इनकी अनिवार्य ज़रूरतें हैं। डीएचओ टीएन पांडे एवं उनकी पूरी टीम अब जिले में ऐसे किसानों की खोज करने में लगी है, जिनके आसपास पानी तो है लेकिन सिंचाई की सुविधा नहीं है। इसी प्रकार ऐसे किसानों को तलाशा जा रहा है जो उत्पादन तो काफी मात्रा में करते हैं, लेकिन उनके उत्पादों को बाजार तक लाने में सड़क का अभाव झेलना पड़ रहा है। भुम्वाड़ी के प्रगतिशील किसान तुलसी प्रसाद एवं कर्णकरायत क्षेत्र के प्रमुख सब्जी उत्पादक रघुवर मुरारी से पूछो उन्हें सड़क न होने का कितना दंश झेलना पड़ रहा है। बागवानी, सब्जी उत्पादन के क्षेत्र में एडीओ एमएस रावत, आशीष खर्कवाल, प्रदीप पचौली एवं निधि पाण्डे द्वारा जो प्रयास डीएचओ के मार्गदर्शन में किए जा रहे हैं, उसे देखते हुए आने वाले समय में जिले की बदली हुई तस्वीर सामने आएगी।