चंपावत। जिले में कुछ ऐसे लोग भी आए जिन्होंने अकेले अपने दम व इच्छा शक्ति के बल पर ऐसे काम कर गए हैं जिनके लिए किसी परियोजना की जरूरत नहीं पड़ी या यूं कहिए कि वह ऐसा काम कर गए हैं जिसमें करोड़ों रुपए खर्च किए जा सकते थे लेकिन उन्होंने यह सब कार्य सामान्य रूप से किया जिस पर सरकार का कोई अतिरिक्त खर्च भी नहीं हुआ और ऐसे लोगों के लीए यहां के किसानों के दिलों में आज भी सम्मान बना हुआ है। जब इनका तबादला हुआ तो किसानों की आंखें छल छला आई थी। चंपावत जिले में श्वेत क्रांति के जनक रहे डॉ भरत चंद ने लोहाघाट में पशु चिकित्सक के रूप में तब चार्ज लिया था जब यहां की गायें घंटी भर यानी बमुश्किल एक लीटर दूध दिया करती थी। जब वह यहां से गए तो हर घर में किसान 15-15 लीटर दूध पैदा करने लगे। दुबले पतले से इस डॉक्टर को देखकर कोई नहीं कह सकता की इनके अंदर कुछ नया करने का ऐसा जज्बा छिपा हुआ है। डॉ चंद की बदौलत ही उत्तराखंड के पार्वतीय जिलों की तुलना में यहां सर्वाधिक दूध का उत्पादन होता है। आज भी डा चंद का कहना है कि वे खानदानी ईमानदार डीएम नवनीत पांडे के साथ मुख्यमंत्री धामी के मॉडल जिले में सहयोग के लिए अपनी सेवाएं देने के लिए तैयार है।
ऐसे ही लोहाघाट के कृषि विज्ञान केंद्र की स्थापना के 35 वर्षों में पहली बार किसानों को डॉ एके सिंह जैसे ऐसे सब्जी वैज्ञानिक मिले जिनकी बदौलत यहां के किसानों ने बेमौसमी सब्जियों का उत्पादन कर अपना जीवन स्तर ऊंचा किया। डॉ सिंह ने अपनी गतिविधियों से न केवल इस कृषि विज्ञान केंद्र को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान ही नहीं दी बल्कि किसानों को पॉलिकल्चर एवं आधुनिक ज्ञान विज्ञान से कम भूमि में अधिक लाभ देने की तकनीक खेतों में जाकर दी। टपक सिंचाई, बोतल इरिगेशन, मल्चिंग, यू टनल आदि तमाम ऐसी विधियां बताई जिससे यहां का किसान हर वक्त उनका नाम लेने से नहीं अघाता या यूं कहें कि कृषि विज्ञान केंद्र की 35 वर्ष की उपलब्धियों में डॉ सिंह के ही ऐसे काम थे जिन्होंने वास्तव में किसानों के हित में काम किया था। यह बात अलग है कि वर्तमान में युवा वैज्ञानिक डॉ रजनी पंत डॉ सिंह के पदचिन्हों पर चलकर इस क्षेत्र में कीवी का व्यापक उत्पादन कराकर किसानों को मालामाल करने का एक लक्ष्य बनाकर चल रही हैं। लोगों का कहना है कि चंपावत को मॉडल जिला बनाने में कृषि बागवानी आदि क्षेत्रों से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र को मजबूत किया जाना जरूरी है, जब इस केंद्र का संचालन पंतनगर विश्वविद्यालय से हटाकर सीधे आईसीएआर को सौंप कर अल्मोड़ा स्थित विवेकानंद कृषि अनुसंधान केंद्र के अधीन लाया जाए।