
लोहाघाट। पूर्वजों की विरासत कहे जाने वाले घराट आज की पीढ़ी के लिए किसी कौतूहल से कम नहीं है। समय की गति एवं पर्वतीय क्षेत्र में हुए पलायन की मार घराटों पर भी पड़ी है। जो बचे हैं उन्हें बचाने का युवा कृषि एवं भूमि संरक्षण अधिकारी हिमांशु जोशी ने बीड़ा उठाया है ।उनका कहना है कि घराट को संरक्षित रखना आज के समय की बड़ी जरूरत बन गई है । घराट जहां ग्रीन एनर्जी का सशक्त माध्यम है वही इसमें पिसे जाने वाले आटे की पौष्टिकता पूर्ण रूप से सुरक्षित रहती है ।
इसके आटे का अलग ही स्वाद एवं जाएगा देता है । घराट पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनाए जा सकते हैं। पानी की उपलब्धता के आधार पर घराट का जीर्णोद्धार किए जाने से इसी पानी से खेतों की सिंचाई की जा सकती है।
जोशी के अनुसार चंपावत को मॉडल जिला बनाने में घराट के संरक्षण का सोच पैदा किया जाना चाहिए। घराट पर्वतीय संस्कृति की ऐसी विरासत है । जो ग्रामीणों को आपस में जुड़े रखते हैं । घराट के कारण सामुदायिक सहभागिता की भावना को पुनर्जीवित किया जा सकता है । आज भी ग्राम पंचायत लफड़ा के बूढ़ाखेत में घराट को पूरे गांव के लोग सामूहिक जन सहभागिता से संचालित कर पूर्वजों की विरासत को पीढ़ी दर पीढ़ी एक दूसरे को सोंपते आ रहे हैं । 500 से अधिक आबादी के बीच आज भी कोई बिजली या डीजल की आटा चक्की नहीं है । इन घाराटों के संरक्षण की पहल की गई है । अभी तक चालू हालत में देवीधुरा के बैरख गावं के मेताड़ मैं भी घराट चालू हालत में है । जिसे संरक्षित करने की जरूरत है।

सीडीओ आर एस रावत ने इस पहल का स्वागत किया है। उनका कहना है कि घराट का विरासत के रूप में संरक्षण करने के लिए प्रस्ताव मांगे गए हैं। अभी बैरख गांव के मैतडऻ तोक का प्रस्ताव मिला है । जहां से भी प्रस्ताव मिलेंगे घाराटों को पुनर्जीवित कर लोगों को रोजगार से जोड़ा जाएगा।

पर्यटन पर गहरी रूचि एवं पैठ रखने वाले दिल्ली के राजी शर्मा का कहना है कि देवीधुरा के बैरख गांव के मैतडऻ में चल रहा घराट पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर सकता है। इस स्थान को सड़क से जोड़े जाने पर यहां मत्स्य पालन, फलोत्पादन एवं बागवानी विकास की भी अपार संभावनाएं हैं।