लोहाघाट। पूर्वजों की विरासत कहे जाने वाले धराट जिन्हें पनचकी या धट के नाम से जाना जाता हैं,आधुनिकता की दौड़,गांव गांव में बिजली व डीज़ल की आटा पीसने की चक्कियां पहुंचने से इनका वजूद प्रायः समाप्त होता जा रहा है।पर्वतीय समाज में इन धराटों का काफी महत्व रहा है। यहां तक की वेद पुराणों,उपनिषदों व इतिहास में भी इनका उल्लेख किया गया है।धराटों का लोक जीवन से गहरा रिश्ता रहा है।यह हमारे पूर्वजों का ऐसा स्थाई कुटीर उद्योग हुआ करता था जिसमें बगैर ईंधन के जल शक्ति द्वारा संचालित कर आटा,दाल आदि पीसा जाता है।इसमें पीसे आटे में उसका प्राकृतिक स्वाद बना रहता है तथा सभी पोषक तत्व सुरक्षित भी रहते हैं।अब धराट बनाने वाले कारीगर भी नहीं मिलते हैं।धराट ग्रामीण जनजीवन का एक ऐसा मिलन केंद्र होता था जहां बैठकर लोग अपने गांव घर की बातें किया करते थे।शादी विवाहों,पूजा के दिनों, जागर आदि के समय तो धराटों में विशेष चहल पहल हुआ करती थी।इन दिनों लोग आटा आदि पीसने के लिए अधिक संख्या में आया करते थे जिससे धराटों में इतनी भीड़ रहती थी कि वहीं पर लोकगीत,चाचरी,झोडा़,आदि का गायन भी किया करते थे।उस समय धराट खबर भेजने व नई सूचना मिलने के भी माध्यम हुआ करते थे।
बाराहीघाम देवीधूरा के केदारनाथ से लगभग दो किलोमीटर दूर बैरखगांव के धटगाड़ में शहीद जमन सिंह मेहरा के पौंत्र हयात सिंह मेहरा ने अपने पूर्वजों की इस विरासत को सुरक्षित रखा हुआ है।वर्ष 1993 की अतिवृष्टि में यह दो मंज़िला धराट धटगाड़ में आए ऊफान के साथ ही बह गया।बाद में मेहरा ने इसे स्वयं के प्रयासों से जैसे-तैसे ठीक कर अपनी आजीविका का साधन बनाया हुआ है ।आज इनका धराट पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। नई पीढ़ी भी पूर्वजों की इस तकनीक को गौर से देखते आ रही है। अभी तक शहीद मेहरा का यह गांव सड़क सुविधा से भी वंचित है। यदि इस गांव को सड़क से जोड़ा जाता है तो ग्रामीणों को तो सड़क सुविधा मिलेगी ही,यहां का धराट भी पर्यटकों के आगमन का केंद्र बनेगा।इस धराट को पर्यटन की दृष्टि से नया लुक देने की जरूरत है।गर्मियों में जब पानी का स्तर कम हो जाता है तब नदी में पानी रोकने की व्यवस्था की जानी है जिसमें रात भर पानी जमा हो सके जिससे दिन में धराट चलाया जा सके। वैसे इस स्थान में एक छोटी सी झील भी बनाई जा सकती है जिसमें छोटी नौका भी संचालित कर पर्यटकों को इस ओर और खींचा जा सकता है।
मुख्य विकास अधिकारी संजय कुमार का कहना है कि धराट हमारे पूर्वजों की विरासत ही नहीं बल्कि यह हमारी हेरिटेज संपदा भी है।अब धराट विलुप्त होते जा रहे हैं। देवीधुरा के समीप धटगाड़ का यह धराट पर्यटन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण तो है ही इस स्थान को सड़क से जोड़ने के बाद यह पर्यटकों के आकर्षण और अच्छा केंद्र बन जाएगा। जिला प्रशासन बाराही धाम समेत अन्य धार्मिक स्थलों का मास्टर प्लान तैयार कर रहा है। देवीधुरा के इस धराट को मास्टर प्लान में शामिल किया जाएगा। इस धराट के माध्यम से हम आने वाले पर्यटकों को यह बताने में भी क़ामयाब होंगे कि किस प्रकार हमारे पूर्वज एक ऐसी तकनीक से अपना जीवन निर्वाह करते थे।