चंपावत। सड़क दुर्घटनाओं में कई माताओं की गोद सूनी पड़ जाती हैं तो कइयों का सुहाग उड़ जाता है। कई महिलाएं अपने भाई व परिवार के प्रियजनों को खो देती हैं। दुर्घटनाओं की विभीषिका तो महिलाओं को ही झेलनी पड़ती है। सड़क दुर्घटनाओं में पुरुषों की होने वाली मृत्यु से परिवार में तो आकस्मिक संकट आ ही जाता है। उसे भी महिला आजीवन झेलती है। इतना सब कुछ होने के बावजूद भी लोगों की दुर्घटनाओं को रोकने के प्रति चेतना जागृत नहीं हो रही है। राष्ट्रीय राजमार्ग की स्थिति देखें तो सुगम यातायात की व्यवस्था होने के बावजूद भी दुर्घटनाएं होना लोगों की खुली लापरवाही को दर्शाता है। बगैर हेलमेट स्कूली बच्चों द्वारा दुपहिया वाहन चलाना, बाजारों में ऐसे फर्राटे के साथ चलना जैसे कहीं आग बुझाने जा रहे हों। ऐसे हालात में राह चलते लोगों का जीवन खतरे में पड़ जाता है। हेलमेट बाइक सवार की यात्रा का एक सुरक्षा कवच है। हेलमेट पहनने से दुर्घटनाएं होने पर भी कफन ओढ़ने से व्यक्ति बच जाता है। ऐसे सामाजिक परिवेश में ट्रेफिक इंजीनियरिंग, यातायात से जुड़े नियमों का पालन, ड्राइवरों को अच्छी ट्रेनिंग, नियमों से यातायात संचालन में अनुशासन लाना, लोगों में जागरूकता पैदा कर उन्हें स्वयं एवं उनके परिवार के जीवन को सुरक्षित रखने की जरूरत है। दुर्घटनाएं होने पर उसका कारण अवश्य ढूंढकर ऐसा प्रयास किया जाना चाहिए जिससे इसकी पुनरावृत्ति न हो।महिला पुलिस उपाधीक्षक वंदना वर्मा एक पुलिस अधिकारी होने के साथ एक मां के नजरिये से दुर्घटनाओं को रोकने की मन से इच्छा रखती हैं। उनका कहना है कि दुर्घटनाओं के पीछे कई मानवीय लापरवाहियां भी अकाल मौतों को दावत देती हैं। यदि शराब पीकर चालक वाहन चला रहा है, नाबालिक छात्र के शौक को पूरा करने के लिए माता-पिता खुद ही अपने लाड़ले के हाथ में बाइक थमा देते हैं तो कम से कम ऐसे लोगों को दुर्घटनाओं का मलाल नहीं होना चाहिए, क्योंकि इसके लिए वे स्वयं जिम्मेदार हैं। उनकी लापरवाही का खामियाजा पूरे परिवार को भुगतना पड़ता है। वंदना का कहना है कि वह समाज के हर वर्ग का सहयोग लेकर दुर्घटनाओं को टालने के लिए एक ऐसा अभियान संचालित करेंगी, जिसमें लोगों के वैचारिक सोच में परिवर्तन लाने के साथ कानूनी प्रदत्त अधिकारों का भी सहारा लिया जाएगा।