चंपावत। आज किसानों की सबसे अधिक पसंद बन चुके सूबे के सबसे कम उम्र के सौरभ बहुगुणा ऐसे काबिना मंत्री हैं, जो ऐसे परिवेश में पले बड़े हैं जिन्हें काली गाय व भैंस में अंतर नहीं आता था। लेकिन डेयरी एवं पशुपालन विभाग का दायित्व मिलने के बाद इनके द्वारा कम समय में इस क्षेत्र में जो काम किए जा रहे हैं, उससे पशुपालकों को पक्का यकीन हो गया है कि उत्तराखंड न केवल दूध के मामले में आत्मनिर्भर बनने जा रहा है बल्कि यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था का भी मजबूत आधार बन रहा है। किसानों से सीधा संवाद कर उनसे आत्मीय रिश्ता जोड़ने एवं पशुधन की बर्बादी की राह पकड़ रहे पशुधन को संवारकर गोबर एवं गोमूत्र से परहेज न करने वाले सौरभ के बारे में उन लोगों का कहना है, जिन्होंने इनके दादा हिमालय पुत्र हेमवती नंदन बहुगुणा की कार्य संस्कृति को देखा है, ठीक वे उसका अनुसरण कर रहे हैं। यही वजह है कि इन्होंने कम समय में ही लोगों के दिलों में अपना स्थान बना लिया है। यह बात अलग है कि अभी इन्हें पर्वतीय जिलों में आने की फुरसत नहीं मिल रही है। सौरभ द्वारा दुग्ध उत्पादन को रोजगार का सशक्त माध्यम बनाने की दिशा में किसानों को जो सुविधाएं दी जा रही हैं ,उसे देखते हुए तो दुधारू गाय, भैंस के साथ गोटवैली व पोल्ट्रीवैली में जो सुविधाएं दी गई हैं, उससे तो दूरदराज क्षेत्रों में रहने वाला किसान सम्मान से जीवन यापन कर सकता है।
एनसीडीसी योजना में दो पशु क्रय करने पर सामान्य को 50 तथा एस सी, एस टी और महिलाओं को 75 फ़ीसदी सब्सिडी की व्यवस्था की गई है। सीएम पशुधन मिशन में 90 फ़ीसदी ब्याज मुक्त ऋण तथा सेक्स साल्टेड सीमन के जरिए बछिया पैदा करने हेतु इसकी प्रयोगशाला उत्तराखंड में स्थापित करने से अब नर बछिया का झंझट भी बहुत कम कर दिया गया है। दुधारू पशुओं के दूध को बढ़ाने के लिए पशु पोषण योजना में अब सायिलेज एवं अन्य उत्पादों में 75 फ़ीसदी अनुदान तथा चारे की समस्या दूर करने के लिए किसानों को मुफ्त चारे की व्यवस्था के अलावा पहाड़ों में पशु आहार पर 50 किलोग्राम के बैग में ₹300 तथा मैदानी क्षेत्रों में ₹200 की विशेष छूट दी जा रही है। अब दूध के साथ गोबर क्रय करने की भी योजना बनाई गई है। स्थानीय स्तर पर भूसा क्रय करने से जहां किसानों को सीधा लाभ मिला है, वही पैक्ड भूसे की पहाड़ों में पर्याप्त आपूर्ति की जा रही है। दूध एवं दूध से बने पदार्थों की स्थानीय स्तर पर खपत एवं रोजगार सुनिश्चित करने के लिए आंचल मिल्क कैफे खोले गए हैं तथा अवशीतन केंद्रों की संख्या में इजाफा किया गया है। अब जरूरत इस बात की है कि फील्ड में यदि इन योजनाओं का सही मायनों में क्रियान्वयन किया जाता है तो इससे रोजगार एवं दूध के उत्पादन दोनों क्षेत्रों में नए आयाम जुड़ने से कोई नहीं रोक सकता।