लोहाघाट। पहाड़ों में पूर्वजों की विरासत कहे जाने वाले नौलों का अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है। हर वक्त शुद्ध पानी से लबालब भरे रहने वाले यह नौले गांव की शान व पहचान हुआ करते थे। कोई भी पिता अपनी लड़की को ब्याहने से पहले यह देखा करते थे कि उसे गांव में पानी के लिए नौले एवं लकड़ी के लिए जंगल कितनी दूर है, जिससे बेटी को लकड़ी व पानी के लिए दूर न जाना पड़े। विकास के इस आपा धापी के दौर में पूर्वजों की इस विरासत को उजाड़ दिया है। इन नौलों के बारे में न तो ग्रामीण न ही शहरी लोगों ने इस ओर कोई ध्यान दिया है। हालात यह है कि अब यह नौले या तो मलवे से पट गए हैं या झाड़ियों से घिर गए हैं। कई स्थानों में यह मवेशियों की प्यास बुझाने में सहायक बने हुए हैं। एलएसजीईडी से शुरू हुआ गांव को नलों से जोड़ने का यह कार्यक्रम जल निगम से लेकर पेयजल संसाधन निगम के द्वारा बखूबी किया जा रहा है। अरबों रुपए गांव में नलों से जोड़ने के बावजूद भी लोगों की प्यास नहीं बुझी। अलबत्ता इन नौलों ने कभी जल स्रोत सूखने जैसी दगाबाजी अपने गांव वालों से नहीं की है। गांव को नलों से जोड़ने वक्त नौलों के रखरखाव की ओर इन महकमों की कोई रुचि ही नहीं रही है।

नौलों के बंजर होने का दंश लोहाघाट नगर के लोग बखूबी झेलते आ रहे हैं। नगर के विभिन्न स्थानों एवं आबादी के मध्य कोई दो दर्जन से अधिक सदाबहार नौले हुआ करते थे, जिनसे न केवल हर वक्त शुद्ध पानी मिला करता था बल्कि यह मवेशियों के पीने, कपड़े धोने के अलावा इसके आसपास के खेतों की सिंचाई भी की जाती थी। नगर के लिए लिफ्ट पेयजल योजना का निर्माण करने के बाद जब प्रदूषित पानी से पीलिया एवं गैस्ट्रोइंटाइटिस जैसे रोग लोगों को घेरने लगे तो तब नगर के लोगों को अपने पूर्वजों की विरासत नौले की याद आने लगी। तब तक नौले की हालत बहुत खराब हो चुकी थी। यह बात अलग है कि एक दो स्थानों में जहां नौले निजी भूमि में थे वहां गृह स्वामी द्वारा इनका रखरखाव किया जाता रहा है। पहले दूसरों को पानी पिलाने में लोग घर बैठे पुण्य अर्जित करने का भाव रखते थे। इसी भावधारा के तहत यहां नौलों का निर्माण भी किया गया था। नौलों का पानी गंदा होने से नगर में थाने के पास समेत नैनीताल बैंक के सामने वाला नौला नगर पंचायत के पूर्व उपाध्यक्ष के नौले समेत बद्री भवन स्थित नौले से नगर के लोग पानी की प्यास बुझाते आ रहे हैं। सार्वजनिक नौलों के रखरखाव में नागरिकों की क्रूर भावना ने पूर्वजों की यह विरासत वीरान पड़ती गई। पानी को लेकर हर वक्त होने वाली मारामारी से लोग चीखते तो आ रहे हैं लेकिन किसी का ध्यान इन नौलों की तरफ नहीं है। हालांकि नगरपालिका के पूर्व चेयरमैन गोविंद वर्मा ने व्यक्तिगत रुचि लेकर कुछ नौलों को नया जीवन देने का प्रयास किया है। लोहाघाट जिले का ऐसा नगर है जहां तीन चार दिन बाद लोगों को थोड़ा पानी मिल पाता है। यदि यहां के सभी नौलों को आबाद किया जाए तो इसके पानी को कपड़ा धोने, मवेशियों को पिलाने व किचन गार्डन के रूप में तो प्रयोग किया जा सकता है।

लोहाघाट। जिलाधिकारी नवनीत पांडे मानते हैं कि चंपावत जिले में हर गांव में ऐसे नौले हैं जो विकट गर्मी में हमारी प्यास बुझाने के साथ हमें अपने पूर्वजों की भी याद दिलाते हैं। जिला प्रशासन द्वारा पर्यटन विभाग से जिले में उपलब्ध नौलों का सर्वेक्षण कराया जा रहा है। इस कार्य में दिल्ली की एक एनजीओ लगी है। मॉडल जिले के हर नौले का जीर्णोधार कर उसे साफ सुथरा बनाया जाएगा। जिससे यहां बाहर से आने वाले पर्यटकों के लिए एक कौतूहल भी होगा कि कैसे पहाड़ के लोग जल संरक्षण करते आ रहे हैं। इन नौलों को सदाबहार रखने के लिए उनके आसपास उतिस जैसे पानी के पोषक पौधों का रोपण भी किया जाएगा तथा पुरातत्व दृष्टि से महत्वपूर्ण नौलों को विशेष चमक दी जाएगी।

By Jeewan Bisht

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