चंपावत। चंपावत को मॉडल जिला बनाने के लिए दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा दिए जाने की अपार संभावनाएं हैं, जिसके लिए जिला योजना में पशुपालकों के लिए सुविधाओं का विस्तार किया जाना आवश्यक है। दूध ऐसा व्यवसाय है कि यह सीधे ग्रामीण अर्थव्यवस्था विशेषकर महिलाओं से जुड़ा हुआ व्यवसाय है। हालांकि पूरे उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों की तुलना में यहां सर्वाधिक दूध का उत्पादन किया जाता है , लेकिन पशुपालकों को दूध का उत्पादन बढ़ाने के लिए तमाम अभावों से जूझना पड़ रहा है। लोगों के पास अच्छे नस्ल की गाएं तो हैं, लेकिन गौशाला नहीं हैं। जिला योजना में वैज्ञानिक तरीके से हवादार एवं रोशनीदार गौशालाएं एवं पशुबाडे़ प्रस्तावित किए जाएं, जिसमें चेककटर, नाद आदि की सभी सुविधाएं हों। भारत सरकार की टीम ने लंपी वायरस के दौरान अपने सर्वेक्षण में पाया कि यहां गोवंश तो अच्छे हैं, लेकिन लोगों के पास गौशाला नहीं है। ऐसी स्थिति में दूध का उत्पादन संभव नहीं है। गाय न बिकने से छोटे से गोठ में दो से तीन गायों को बांधना पशुपालक की मजबूरी बना हुआ है। गहराते चारे के संकट को देखते हुए पशुपालकों को नेपियर की अत्यधिक नवीनतम प्रजाति की घास की गांठें उपलब्ध कर इसको लगाने में महिला समूहों को जोड़कर उन्हें मनरेगा से मजदूरी दिलाने से यह कार्यक्रम तेजी से पनपने लगेगा। भूसे की ट्रांसपोर्ट सब्सिडी बढ़ाने के साथ इसकी उपलब्धता न्याय पंचायत क्षेत्रों में करने के लिए वहां पशु चारा बैंक बनाए जाने चाहिए। वर्तमान में यह प्रक्रिया ब्लॉक मुख्यालयों की 10 किलोमीटर की परिधि में शुरू की जाए। इसके सफल होने के बाद इसका विस्तार होना चाहिए। पशुपालन विभाग द्वारा संचालित 1962 पशु आपात सेवा को 108 सचल चिकित्सा वाहनों की तरह संचालित करने की जरूरत है, जिसमें ऐसी जीवन रक्षक दवाइयां होनी चाहिए जिससे दुधारू पशु का जीवन बच सके। साथ ही पशु चिकित्सालयों में पर्याप्त जीवन रक्षक दवाओं एवं दुग्ध वर्धक मिनरल मिक्सचर भी शामिल किए जाएं, जिसमें विशेषकर यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि सभी दवाएं एवं अन्य वस्तुएं बाजारों में ही ब्रांडेड होनी चाहिए।
दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए संतुलित पशु आहार, साइलेस में पचास फीसदी सब्सिडी दी जाए। अस्पतालों व सचल वाहनों में हार्मोन्स के ऐसे टीके उपलब्ध हों जो बांझ गायों को दुधारू बनाने के साथ उन्हें दूध बढ़ाने का किट भी उपलब्ध किया जाए। चारा बीज की आपूर्ति कम से कम 5 गुना बढ़ाई जानी चाहिए। अभी तक जानकारी के अभाव में बमुश्किल एक दर्जन लोगों के यहां ही काउ बेड का प्रयोग किया जाता होगा, जबकि यह हर दुधारू पशुपालक की अनिवार्य आवश्यकता है। यदि शुरुआती तौर पर ब्लॉक मुख्यालयों के 10 किलोमीटर के दायरे में यह सुविधा उपलब्ध की जाए तो इसकी सफलता के आधार पर भविष्य में विस्तार किया जा सकता है।
चंपावत। चंपावत को मॉडल जिला बनाने के लिए दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा दिए जाने की अपार संभावनाएं हैं, जिसके लिए जिला योजना में पशुपालकों के लिए सुविधाओं का विस्तार किया जाना आवश्यक है। दूध ऐसा व्यवसाय है कि यह सीधे ग्रामीण अर्थव्यवस्था विशेषकर महिलाओं से जुड़ा हुआ व्यवसाय है। हालांकि पूरे उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों की तुलना में यहां सर्वाधिक दूध का उत्पादन किया जाता है , लेकिन पशुपालकों को दूध का उत्पादन बढ़ाने के लिए तमाम अभावों से जूझना पड़ रहा है। लोगों के पास अच्छे नस्ल की गाएं तो हैं, लेकिन गौशाला नहीं हैं। जिला योजना में वैज्ञानिक तरीके से हवादार एवं रोशनीदार गौशालाएं एवं पशुबाडे़ प्रस्तावित किए जाएं, जिसमें चेककटर, नाद आदि की सभी सुविधाएं हों। भारत सरकार की टीम ने लंपी वायरस के दौरान अपने सर्वेक्षण में पाया कि यहां गोवंश तो अच्छे हैं, लेकिन लोगों के पास गौशाला नहीं है। ऐसी स्थिति में दूध का उत्पादन संभव नहीं है। गाय न बिकने से छोटे से गोठ में दो से तीन गायों को बांधना पशुपालक की मजबूरी बना हुआ है। गहराते चारे के संकट को देखते हुए पशुपालकों को नेपियर की अत्यधिक नवीनतम प्रजाति की घास की गांठें उपलब्ध कर इसको लगाने में महिला समूहों को जोड़कर उन्हें मनरेगा से मजदूरी दिलाने से यह कार्यक्रम तेजी से पनपने लगेगा। भूसे की ट्रांसपोर्ट सब्सिडी बढ़ाने के साथ इसकी उपलब्धता न्याय पंचायत क्षेत्रों में करने के लिए वहां पशु चारा बैंक बनाए जाने चाहिए। वर्तमान में यह प्रक्रिया ब्लॉक मुख्यालयों की 10 किलोमीटर की परिधि में शुरू की जाए। इसके सफल होने के बाद इसका विस्तार होना चाहिए। पशुपालन विभाग द्वारा संचालित 1962 पशु आपात सेवा को 108 सचल चिकित्सा वाहनों की तरह संचालित करने की जरूरत है, जिसमें ऐसी जीवन रक्षक दवाइयां होनी चाहिए जिससे दुधारू पशु का जीवन बच सके। साथ ही पशु चिकित्सालयों में पर्याप्त जीवन रक्षक दवाओं एवं दुग्ध वर्धक मिनरल मिक्सचर भी शामिल किए जाएं, जिसमें विशेषकर यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि सभी दवाएं एवं अन्य वस्तुएं बाजारों में ही ब्रांडेड होनी चाहिए।
दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए संतुलित पशु आहार, साइलेस में पचास फीसदी सब्सिडी दी जाए। अस्पतालों व सचल वाहनों में हार्मोन्स के ऐसे टीके उपलब्ध हों जो बांझ गायों को दुधारू बनाने के साथ उन्हें दूध बढ़ाने का किट भी उपलब्ध किया जाए। चारा बीज की आपूर्ति कम से कम 5 गुना बढ़ाई जानी चाहिए। अभी तक जानकारी के अभाव में बमुश्किल एक दर्जन लोगों के यहां ही काउ बेड का प्रयोग किया जाता होगा, जबकि यह हर दुधारू पशुपालक की अनिवार्य आवश्यकता है। यदि शुरुआती तौर पर ब्लॉक मुख्यालयों के 10 किलोमीटर के दायरे में यह सुविधा उपलब्ध की जाए तो इसकी सफलता के आधार पर भविष्य में विस्तार किया जा सकता है।