लोहाघाट। चंपावत को मॉडल जिला बनाने मैं बेमौसमी सब्जियों, यूरोपियन सलाद वाली सब्जियों के अलावा फूलों की खेती के जरिए एक नाली भूमि में पॉलिकल्चर के माध्यम से सब्जी उत्पादन किया जाए तो 75 से एक लाख रुपए तक की किसान आमदनी कर सकता है। यह कहना है भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत पूसा संस्थान के प्रधान सब्जी वैज्ञानिक डॉ ए के सिंह का। लोहाघाट स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में सब्जी वैज्ञानिक के रूप में यहां 6 वर्षों तक कार्य कर चुके डॉ सिंह ने ही जिले में पॉलीहाउस,पॉलिटनल, छायादार हरे रंग की जालीघर, मल्चिंग की पद्धति की यहां शुरुआत की गई, जिनके तकनीकी ज्ञान के बदौलत यहां के सैकड़ों किसान सम्मान से जीवन यापन कर रहे हैं। डॉ सिंह के अनुसार पोलीहाउस, पॉली टनल,ग्रीनहाउस में शिमला मिर्च,बैगन,टमाटर,गोभी आदि सभी प्रकार की सब्जियों में खरपतवार पैदा नहीं होते। लंबे समय तक भूमि में नमी बनी रहती है। पौधों की पोषण सुरक्षा बढ़ने एवं भूमि कटाव रोकने से 50 फीसदी उत्पादन बढ़ जाता है। ड्रिप इरीगेशन या फव्वारा सिंचाई की सुविधा मिल जाए तो उत्पादन तीन से चार गुना बढ़ जाता है। डॉ सिंह का कहना है कि पोली ग्रीन हाउस में फल-फूलों, औषधीय पौधों, सब्जी पौधों की नर्सरी बनाने से तो एक नाली भूमि से ढाई से तीन लाख रुपए अर्जित किए जा सकते हैं।
डा सिंह का कहना है कि चंपावत जिले के किसान वैज्ञानिक तकनीक को बहुत जल्दी अपनाते आ रहे हैं बशर्ते कि उन्हें उनकी भाषा में समझाया जाए। उनमें सीखने की इतनी ललक है 15 वर्ष बाद भी वे उनसे बराबर संपर्क बनाए रखते हैं।
डॉ सिंह के अनुसार पालीटनल एक ऐसी टेक्नोलॉजी है, जिसे कहीं पर भी ले जाया जा सकता है। इस अस्थाई माइक्रो पॉलीहाउस में बरसात या जाड़ों में सब्जियों को ढकने से उत्पादन काफी बढ़ने लगता है। वर्तमान में यूरोपियन सब्जियों के सलाद की व्यापक मांग होने लगी है। ठंडे तापमान में होने वाली लेट्यूस,पारसेले,सैलरी, पाकचोई,चाइनीस कैबेज आदि पत्तीदार ऐसी सब्जियां हैं, जिनको सलाद के रूप में खाने से तमाम पोषक तत्व मिलते हैं। इस कार्यक्रम के साथ मौनपालन कार्यक्रम अपनाया जाए तो सब्जियों की उच्च गुणवत्ता होने के साथ पॉलिनेशन से 30 से 35 फ़ीसदी और उत्पादन बढ़ने लगेगा। चंपावत को मॉडल जिला बनाने के लिए फल-फूलों,बेमौसमी सब्जियां, मौन पालन, मशरूम उत्पादन, मत्स्य पालन, उन्नत नस्ल के दुधारू पशुपालन हेतु लोहाघाट स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में प्रदर्शन इकाइयां स्थापित कर पॉलिकल्चर को बढ़ावा देने से यहां के पढ़े-लिखे नौजवानों को रोजगार से भटकने एवं पलायन से रोका जा सकता है।