चंपावत। देवभूमि उत्तराखंड के कैलाश पर्वत में देवआदिदेव भगवान शिव शंकर का निवास तथा माता पार्वती का मायका होने के कारण सारे संसार में विशेष पवित्र स्थान माना जाता है। यही वजह है कि उत्तराखंड का जन मानस अनादि काल से ही भगवान शिव व पार्वती का उपासक रहा है। यहां स्थापित अधिकांश शक्तिपीठ पार्वती एवं भगवान शिव से जुड़े हुए हैं जो शक्ति के उपासकों के साथ ही लोगों के आस्था व श्रद्धा के केंद्र भी हैं।
चंपावत जिले में भी कई ऐसे स्थान है जहां भगवान शिव की पूजा आराधना शताब्दियों से की जा रही है।जहां सप्तस्वरो -तारकेश्वर, क्रांतेश्वर, डिप्तेश्वर, मलाडेश्वर, हरेश्वर, रिशेश्वर एवं मानेश्वर का विशेष महत्व है । सात स्वरों की परिक्रमा को अयोध्या की सप्तकोशी परिक्रमा के समान ही पूर्ण फलदायक बताया गया है। महाशिवरात्रि को हर हर महादेव, जय शिव शंकर के स्वर धार्मिक आस्था को और मजबूत करते हैं। महाशिवरात्रि को हर हर महादेव का उद्घोष करते हुए प्रत्येक परिवार के सदस्य उपवास रखकर विशेष पूजा अर्चना करते हैं। सप्तकोशी व सप्तेश्वरी परिक्रमा का पहला पड़ाव तारकेश्वर महादेव है। उत्तर वाहिनी गंडक नदी के उद्गम स्थल पर स्थित यह स्थान बेहद रमणीक , दूसरा पड़ाओ कुमाऊं शब्द की उत्पत्ति से संबंधित कूर्म पर्वत चोटी में स्थित क्रांतेश्वर महादेव का मंदिर है। इस स्थान पर शिवलिंग की अपनी विशेषता है। वह शक्ति के ऊपर नहीं अंदर की ओर है। चंपावत की सबसे ऊंची चोटी पर स्थापित इस मंदिर में आज भी भगवान शिव प्रसन्न होने पर भक्तों को सिंह के रूप में अपने दर्शन देते हैं।
तीसरा पड़ाव गंडक नदी के संगम पर बसा दीप्तेश्वर मंदिर है। मानस खंड में इस स्थल की अपनी चमत्कारी मान्यताएं वर्णित है।चौथा पड़ाव मंच मार्ग पर मलाडेश्वर है, यहां शिव मंदिर के साथ ही अष्ट भैरव व नवग्रह के मंदिर स्थापित है। पांचवा पड़ाओ दिगालीचोड से लगभग तीन किलोमीटर दूर हरेश्वर महादेव का मंदिर है जहां आज भी न्याय के लिए लोग उनकी शरण में जाते हैं। छठा पड़ाओ लोहाघाट का प्रसिद्ध शिव मंदिर है, यहां शिव मंदिर के साथ बेताल व अन्य मंदिरों के व्यापक समूह भी स्थापित है। इस सप्तेश्वरी परिक्रमा का अंतिम पड़ाव मानेश्वर है,जिसकी उत्पत्ति अर्जुन के गांडीव धनुष से हुई थी। इसके अलावा जिले में बालेश्वर, सर्वेश्वर, भागेश्वर, पंचेश्वर, रामेश्वर सेमेत कई ऐसे शिव मंदिर है जहां दर्शन मात्र से भगवान शिव उनकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।