चंपावत। लंपी वायरस से जिले में पशुओं को भारी नुकसान पहुंचा है। चंपावत ऐसा जिला है, जहां उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में सर्वाधिक दूध का उत्पादन किया जाता है। यहां वायरस ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचाया है। पशुपालन एवं डेयरी विभागों के बीच समन्वय न होने के कारण मौतों का सही आंकड़ा सामने नहीं आ रहा है। पशुपालन विभाग के एडी डा. बी सी कर्नाटक का कहना है कि अभी तक 127 पशुओं के मरने की सूचना मिली है, जबकि गैर सरकारी सूत्रों का कहना है कि साढ़े तीन सौ तक पशुओं की मौत हुई है। डीएम नरेंद्र सिंह भंडारी द्वारा सभी एसडीएम को मौतों की विस्तृत रिपोर्ट संग्रह करने को कहा है। वायरस के कारण दूध के उत्पादन में भी काफी गिरावट आ गई है। हालांकि पशुपालन विभाग में पचास फ़ीसदी पशु सेवा केंद्रों में स्टाफ नहीं है, इसके बावजूद भी वायरस की चपेट में आए दुधारू पशुओं को बचाने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। वायरस को काबू करने में निष्क्रियता बरतने पर विभाग द्वारा यहां के सीडीओ डा. बीएस भंडारी को प्रशासनिक आधार पर मुख्यालय में संबद्ध किया गया है तथा उनके स्थान पर लोहाघाट के वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी डा. डीके चंद को नियुक्त किया है। डा. चंद के नेतृत्व पशुओं को बचाने का कार्य तेजी से किया जा रहा है तथा धीरे-धीरे स्थिति नियंत्रण में आती जा रही है।
लंपी वायरस का मुकाबला करने के लिए विभाग में स्टाफ की कमी बड़ी बाधक बनी हुई है। इसी के साथ कई स्थानों में पशु अस्पताल व पशु सेवा केंद्र खोलने की भी आवश्यकता महसूस की गई है। हालांकि विभाग के एडी डा. कर्नाटक द्वारा चंपावत जिले का सघन दौरा करने के बाद लधिया घाटी के रीठा साहिब, भिंगराडा, रीठाखाल, दिगालीचौड़ में पशु सेवा केन्द्र खोलने की तात्कालिक आवाश्यकता महसूस की है। उन्होंने दिसंबर तक नया स्टाफ आनेतक सभी पशु सेवा केंद्रों में पशुधन प्रसार सहायकों को तैनात करने की बात कही है। इस स्थिति में सीएम धामी के चंपावत को मॉडल जिला बनाने के क्रम में यहां दूध का उत्पादन बढ़ाया जाना संभव होगा। मृतक पशुओं के मालिकों को तत्काल 50-50 हजार की सहायता दी जानी आवश्यक है। हालांकि इस दिशा में सीएम धामी पहले से ही काफी गंभीर हैं।