लोहाघाट। सनातन प्रकृति को आत्मसात कर अनादिकाल से चला आ रहा ऐसा धर्म है, जो जल, वायु, वृक्ष, पशु,पक्षी, सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी पर साक्षात ईश्वरीय सत्ता होने का अनुभव कराता है। उसकी उपासना कर जो ऊर्जा हम सबको मिलती है, उसी से हम सब धर्म कर्म से जुड़े हुए हैं। उसकी आस्था की डोर को विषम परिस्थितियों के बावजूद भी सनातन धर्म के लोग अपनाए हुए हैं। सनातनधर्म पर क्षणिक लाभ के लिए किये जा रहे हमलों से आहत पुराणों के मर्मज्ञ, समाज में व्याप्त कुरीतियों को लगातार दूर कर लोगों को धर्म कर्म से जोड़ते आ रहे प्रख्यात कथावाचक आचार्यश्री प्रकाश कृष्ण शास्त्री ने यह विचार व्यक्त किए। अपनी व्यस्त दिनचर्या से वार्ता के लिए समय निकाल कर संक्षिप्त वार्ता करते हुए उन्होंने सनातन विरोधियों के लिए भगवान से सद्बुद्धि की प्रार्थना करते हुए कहा कि उन्हें यह मालूम नहीं कि जब तक सूर्य और चंद्रमा प्रकाशवान होते रहेंगे, तब तक सनातन धर्म पर कोई आंच नहीं आ सकती। जिस दिन सनातन समाप्त होगा, उसी दिन इस धरा से मानव का भी अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। उन्होंने राजनीति के गिरते स्तर व सोच पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में इस प्रकार की मानसिकता के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
आचार्यश्री का कहना है कि सत्य,अहिंसा,परोपकार, प्रकृति की दिव्य अलौकिक शक्तियां जिस सनातन धर्म का आधार रही हैं, उसकी जड़ों को लोग आस्था से सींचते आ रहे हैं। उसकी जड़ें इतनी मजबूत हैं कि उसे उखाड़ने का प्रयास करने वालों की शक्ति एवं बुद्धि क्षीण हो जाएगी और सनातन धर्म में और अधिक चमक आने लगेगी। आचार्यश्री का कहना है कि सनातन धर्म प्रकृति पर आधारित ऐसा धर्म है, जिसे व्यक्ति बिना वेद पुराण पढ़े अपना सकता है। यही वजह है कि सृष्टि के सृजन के साथ जिस धर्म की उत्पत्ति हुई है, उसी की कोख से अन्य धर्म निकले हैं। सनातन में विकृतियां ढूंढ रहे लोगों की सद्बुद्धि आने की कामना करते हुए आचार्यश्री का कहना है कि पानी का धारा किसी से नहीं पूछता कि उसका पानी कौन पी रहा है? इसी प्रकार पेड़ किसी से नहीं पूछता कि उसके फल कौन खा रहा है? इससे जाहिर है कि सृष्टि की दृष्टि में सभी बराबर हैं।