लोहाघाट।
हालांकि समूचा उत्तराखंड ही सैनिक बहुल क्षेत्र है जहां प्रतिवर्ष फौजी अपनी योग्यता अनुसार 15 वर्ष की सेवा के बाद रिटायर होकर अपने घरों को आते रहे हैं।फौज में रहते हुए एक फौजी को विभिन्न क्षेत्रों में काम करने का अच्छा अनुभव होता है ।सेवा के दौरान उन्हें विभिन्न क्षेत्रों को देखने का भी अवसर मिलता है ।जब यह फौजी रिटायर होने के बाद घर आते हैं तो इनके पास अनुभव व सामर्थ्य का तो खजाना होता ही है।साथ ही वह आर्थिक दृष्टि से भी काफी मजबूत होते हैं । उनमें कुछ नया करने का अभूतपूर्व जज्बा भी होता है लेकिन इनका एक दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि समाज की इस ऊर्जाशील ईकाई का दोहन करने के लिए सरकारी तौर पर ढिंढोरा तो पीटा गया लेकिन वास्तव में धरातल पर कोई प्रयास ही नहीं किए गए ।फौजी के घर आने पर वह अपने लिए नया मकान बनाकर सारी जमा पूंजी खर्च कर देते हैं जबकि इस पूँजी से वह अपने तकनीकी हुनर के मुताबिक रोजगार करते तो ऐसे कई मकान तो लगा ही सकते थे तथा स्वयं को रोज़गार से जोड़कर सम्मानजनक ढंग से जीवन यापन भी करते।
लोहाघाट से लगभग 6 किलोमीटर दूर सुई ख़ैसकाण्डे के तारा दत्त खर्कवाल ने वर्ष 1992 में कैटेगरी से फ़ौज से घर आने के बाद बगैर समय गवाए अपने शेष जीवन को खेत के साथ बिताने का निर्णय लेते हुए बेमौसमी सब्जियों,फल उत्पादन एवं दुग्ध उत्पादन को आधुनिक कृषि तकनीक से अपनाने का निर्णय लिया। अपनी बंजर भूमि को आबाद कर उसमें पॉलीहाउस लगाकर बेमौसमी सब्ज़ियों का उत्पादन शुरू कर दिया। इस कार्य में जलागम के उप परियोजना निदेशक नवीन बर्फाल एवं कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा काफी प्रोत्साहित किया गया ।बाद में सब्जी वैज्ञानिक एके सिंह ने तो उन्हें इतना प्रोत्साहित किया कि यह 10 किलो वजनी फूल गोभी पैदा करने लगे।भरी गर्मियों में इतनी भारी फूलगोभी को देखकर लोग चौंक गए। श्री खर्कवाल को देखकर गांव के अन्य फौजी रमेश खर्कवाल व अन्य लोग भी इस व्यवसाय को अपनाने लगे।आज सभी लोग खेती के क्षेत्र में आगे बढ़ते जा रहे हैं ।मौसम चक्र में आए बदलाव के बाद श्री खर्कवाल ने सेव की जीरोमाइल,रेड ब्लॉक्स,किंग रौड़,सुपर चीप,गाला एवम् जिंजर गोल्ड आदि प्रजातियों के सेव लगाने शुरू किये।
श्री खर्कवाल ने अपने को प्रगतिशील किसान के रूप में स्थापित कर दिया।
उनकी मेहनत को देखते हुए इन्हें पहले ब्लॉक से दस हज़ार रुपये तथा बाद में जिले से पच्चीस हज़ार रुपये का नगद पुरस्कार के साथ उत्कृष्ट किसान होने का प्रमाण पत्र मिला ।इसके बाद इनके यहाँ पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों एवं ज़िला अधिकारी समेत अन्य अधिकारियों का आना शुरू हो गया।
श्री खर्कवाल द्वारा 12 वर्ष तक अपने यहाँ फ़ार्म स्कूल संचालित कर किसानों को विभिन्न कार्यों का प्रशिक्षण भी दिया गया।इनका मानना है कि जब हम चम्पावत को मॉडल ज़िला बनाने जा रहे हैं ,ऐसी स्थिति में यदि सरकार पूर्व फ़ौजियों व शिक्षित बेरोज़गारों को प्रशिक्षण देकर हुनरमंद बनाती है तो इससे बड़ा रोज़गार और सम्मान कहाँ मिलेगा?

फोटो – पॉलीहाउस में ऐसे टमाटर पैदा कर रहे हैं श्री खर्कवाल

By Jeewan Bisht

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